
केंद्र ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि अडॉप्टेशन ऑफ लॉज (अमेंडमेंट) ऑर्डर-2019 पर पुनर्विचार किया जा रहा है, जिसके तहत असम इनर लाइन प्रणाली से बाहर हो चुका है। वर्ष 2019 के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने केंद्र का पक्ष रखा।

चीफ जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना व जस्टिस वी. रामासुब्रमण्यन ने अटॉर्नी जनरल के आग्रह पर केंद्र को इस मुद्दे पर पुनर्विचार के लिए चार हफ्ते की मोहलत प्रदान की। जून में शीर्ष अदालत ने शासनादेश को लागू करने पर रोक लगाने से इन्कार कर दिया था। याचिकाकर्ताओं ऑल ताई अहोम स्टूडेंट्स यूनियन व उसके सहसचिव गोजेन गोगोई का दावा है कि इसके जरिये असम को उसके जिलों को इनर लाइन एरिया घोषित करने तथा नागरिकता (संशोधन) कानून को सीमित करने के अधिकार से वंचित कर दिया गया है।
इनर लाइन प्रणाली स्थानीय लोगों को जमीन, रोजगार व अन्य मामलों में संरक्षण प्रदान करती है। असम में इसके लागू होने पर बहर से आने वाले लोगों पर प्रतिबंध लग जाएगा। उन्हें इनर लाइन जिलों में प्रवेश के लिए इजाजत लेनी होगी।
याचिकाकर्ता अडॉप्टेशन ऑफ लॉज (अमेंडमेंट) ऑर्डर-2019 को रद करने की मांग कर रहे हैं। राष्ट्रपति की तरफ से जारी यह आदेश बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेग्युलेशन (बीईएफआर) 1873 में संशोधन करता है जो राज्य को उसके ज्यादातर जिलों को इनर लाइन एरिया घोषित करने का अधिकार देता है।