भाजपा सरकार में ब्राह्मण समाज का उत्पीड़न हो रहा है: मायावती

उत्तर प्रदेश। अयोध्या में भव्य राम मंदिर पूजन के बाद यूपी में हर दल ने जाति की राजनीति के नए-नए अध्याय खोलने शुरु कर दिए हैं। सांप्रदायिकता को टारगेट कर खुद को एक-दूसरे से बड़ा भक्त बताने में जुट गए है, क्योंकि इससे पहले ब्राह्मण हाशिए पर था। लेकिन सियासत की मजबूरी कहें या जरुरत पर अब सभी को ब्राह्मण समाज की फिक्र हो रही है।

मायावती ने कहा कि वर्तमान भाजपा सरकार में भी ब्राह्मण समाज का उत्पीड़न हो रहा है। प्रदेश भर में ब्राह्मणों की हत्याएं हो रही हैं और पुलिस कार्रवाई नहीं कर रही है। इसीलिए ब्राह्मण में रोष है।

बसपा सुप्रीमो ने कहा कि राम मंदिर पर राजनीति हो रही है। कहा कि भूमि पूजन में राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद को बुलाना चाहिए था। प्रधानमंत्री अपने साथ राष्ट्रपति को भी लाते तो अच्छा होता। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। भूमि पूजन में राष्ट्रपति को नहीं बुलाए जाने से अच्छा मैसेज नहीं गया।,

राम मंदिर पर सियासत न करने की नसीहत देने वाली मायावती ने अखिलेश की मूर्ति पॉलिटिक्स पर निशाना साधा और कहा, “उन्हें अगर ब्राह्मणों की इतनी फिक्र थी तो उन्हें अपने कार्यकाल में ही मूर्तियां लगवानी चाहिये थी” स्वयं को ब्राह्मणवादी बताते हुए मायावती ने कहा कि वो और उनकी पार्टी तो हमेशा से ही ब्राह्मणों को प्रतिनिधित्व देती रही है।

मायावती ने यह भी कहा, “चार बार बनी बीएसपी सरकार ने सभी वर्गों के महान संतों के नाम पर अनेक जनहित योजनाएं शुरू की थीं और जिलों के नाम रखे थे, जिसे बाद में आई समाजवादी पार्टी की सरकार ने मानसिकता और द्वेष की भावना के चलते बदल दिया। बीएसपी की सरकार बनते ही इन्हें फिर से बहाल किया जाएगा”।

भक्ति का चोला ओढ़कर, आस्था की नाव पर सवार होकर सियासी वैतरणी पार करने का ये राजनीतिक तरीका शुरुआत से ही प्रासंगिक रहा है और लोकतंत्र के लिए सबसे बड़े दुर्भाग्य की बात तो ये है कि आज भी वोटों के लिए ये फार्मूला कारगर है। जिसमें हर बार की तरह जनता जनार्दन इस सियासी खेल में मोहरा बनकर रह जाती है।

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