15 सालों बाद मिली सत्ता नहीं संभाल पाई कांग्रेेस, इस वजह से टूटी पार्टी…
मध्य प्रदेश में 15 साल लंबे इंतजार के बाद कांग्रेस को सत्ता मिली थी. 17 दिसंबर 2018 को कमलनाथ मुख्यमंत्री बने थे. हालांकि कांग्रेस की जीत बहुत बड़ी नहीं थी, लेकिन इस जीत का प्रतीकात्मक महत्व था. नरेंद्र मोदी के बाद बीजेपी के सबसे सफल मुख्यमंत्रियों में शुमार किए जा रहे शिवराज सिंह चौहान का किला ध्वस्त हुआ था. कमलनाथ मुख्यमंत्री के साथ-साथ प्रदेशाध्यक्ष भी बने रहे. यही बात उनकी सरकार जाने का सबसे बड़ा कारण साबित हुई. अगर प्रदेशाध्यक्ष पद ज्योतिरादित्य सिंधिया को मिल जाता तो वे अलग नहीं होते और विधायकों को तोड़कर नहीं ले जाते और कमलनाथ की सरकार नहीं गिरती. इसलिए यह भी कहा जा सकता है कि कमलनाथ की सरकार खुद उनकी महत्वाकांक्षा के चलते गिरी.
कमलनाथ की सरकार बनने से पहले कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष राहुल गांधी ने एक फोटो पोस्ट किया था, जिसमें उन्होंने कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया को वारियर्स बताया था. कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि उस समय राहुल गांधी ने आपसी संबंधों के चलते किसी तरह ज्योतिरादित्य सिंधिया को शांत कर लिया था, लेकिन जब कमलनाथ को कुर्सी हासिल हो गई तो उन्होंने ज्योतिरादित्य सिंधिया को दरकिनार करना शुरू कर दिया. उनके कोटे के विधायकों की पार्टी में सुनवाई बंद हो गई. उन विधायकों के क्षेत्र में सरकार ध्यान नहीं दे रही थी. उन विधायकों की अधिकारी भी नहीं सुन रहे थे. यही बात उन्हें अखरती चली गई.
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पिछले साल लोकसभा चुनाव से पहले तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने एक बार फिर प्रियंका गांधी वाड्रा के साथ ज्योतिरादित्य सिंधिया को एक नई जिम्मेदारी सौंपी. प्रियंका गांधी वाड्रा पूर्वी उत्तर प्रदेश तो ज्योतिरादित्य सिंधिया को पश्चिमी उत्तर प्रदेश का प्रभारी महासचिव बनाया गया. तब इसे राहुल गांधी का मास्टर स्ट्रोक माना गया था, लेकिन इसका रिजल्ट 0 साबित हुआ और राहुल गांधी खुद अपनी अमेठी सीट से हार गए. तब जानकारों ने यह बताया कि कमलनाथ के कहने पर ही ज्योतिरादित्य सिंधिया को मध्य प्रदेश से बाहर करने के लिए उन्हें पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए यह टफ टास्क था. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की हालत सालों से खराब थी और कोई चमत्कार ही कांग्रेस में जान फूंक सकती थी. इसलिए ज्योतिरादित्य सिंधिया को फेल करने के लिए ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पार्टी की कायाकल्प का जिम्मा उन्हें सौंपा गया था.