
फिल्म– ऑक्टोबर
रेटिंग– 3.5
सर्टिफिकेट– U/A
स्टार कास्ट– वरुण धवन, बनिता संधू,
डायरेक्टर– शूजित सरकार
प्रोड्यूसर– शूजित सरकार
अवधि –1घंटा 55मिनट
म्यूजिक– शांतनु मोइत्रा
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कहानी– ऑक्टोबर की कहानी शियुली और डैन के इर्द गिर्द घूमती है। शियुली और डैन दोनों ही होटल मैनेजमेंट के स्टूडेंट होते हैं। होटल में साथ काम करने के बावजूद दोनों ही एक दूसरे से बहुत कम बात करते है। इसके बावजूद दोनों के बीच स्ट्रॉन्ग और स्पेशल बॉन्डिंग होगी है।
एक रोज शियुली का एक्सीडेंट हो जाता है उस वक्त वहां डेन उसके पास नहीं होता है वहां मौजूद लोग उसे बताते हैं कि एक्सीडेंट से पहले शियुली को आखिरी सवाल यही होता है कि, ‘डैन हां है ?’ एक्सीडेंट इतना खतरनाक होता है कि शियुली कोमा में चली जाती है।
डैन के जहन में शियुली के आखिरी अलफाज गूंजते रहते हैं। उसे बार बार यह महसूस होता है कि जब शियुली ने उसके बारे में पूछा था तो उस वक्त वह उसके पास क्यों नहीं था। शियुली की मदद करने की चाहत में डैन उसे हॉस्पिटल से घर ले आता है। उसकी देखभाल करता है। आगे बढ़ते हुए दोनों की कहानी किस अंजाम तक पहुंचती है यह जानने के लिए आपको सिनेमाहॉल जाना पड़ेगा।
एक्टिंग– वरुण धवन को अबतक दर्शकों ने चुलबुले और मस्त मौला अंदाज में देखा है लेकिन इस बार वरुण ने खुद को चैलेंज करते हुए लीक हटकर किरदार चुना है। वरुण को पहली बार ऐसा किरदार निभाते देख उनके फैंस को बेहद खुशी होगी। करियर के पीक प्वाइंट पर ऐसा किरदार चुनकर उन्होंने साबित किया है कि वह एक वर्सेटाइल एक्टर हैं।
वहीं दूसरी ओर बनिता संधू ने इस फिल्म से बॉलीवुड में पहला कदम रखा है। फिल्म के मुताबिक बनिता को भले ही लंबे चौड़े डायलॉग नहीं मिले हैं लेकिन उन्होंने अपने एक्प्रेशन और इमोशन से काफी इम्प्रेस किया है।
डायरेक्शन– शूजित सरकार ने फिल्म का डायरेक्शन बहुत अच्छे से किया है। अबतक के करियर में अलग अलग तरह की फिल्में देने वाले शूजित इस फिल्म से भी कुछ नया और अलग लेकर आए हैं। उन्हें इस बात का पूरा आइडिया है कि किस तरह वरुण और बनिता जैसे एक्टर्स से उनका बेस्ट परफॉर्म करवना है। फिल्म में प्यार के अलग अलग रंग को बखूबी दर्शाया गया है। ऑक्टोबर बाकी फिल्मों से काफी हटकर है। फिल्म के कुछ हिस्सों को थोड़ा और मजबूत किया जा सकता था। कहानी थोड़ी सुस्त लगती है। यह फिल्म अलग तरह के जॉनर के लोगों के लिए है। एडिटिंग में भी कमी नजर आई है। रिपीट नरेशन होने की वजह से फिल्म कुछ जगह बोर करती है।
म्यूजिक – फिल्म का म्यूजिक अच्छा है। कहानी की तरह गाने भी स्लो हैं। गाने फिल्म में तो पूरी तरह फिट बैठे है लेकिन दर्श के बीच ज्यादा फेमस नहीं हो पाए हैं।
देखें या नहीं- अलफाज नहीं जज्बातों को जाहिर करती इस फिल्म को देखने सिनेमाहॉल जा सकते हैं।