
होली एक ऐसा त्यौहार है, जिसकी धूम देश में ही नही बल्कि विदेशों में भी देखने को मिलती है. इस दिन लोग एक-दूसरे के साथ सारे झगड़े भूलकर इस त्यौहार को मनाते हैं. होलिका दहन के बाद लोग रंग खेलते हैं. लेकिन एक गांव ऐसा भी है, जहां पिछले 200 सालों से होली नहीं मनाई गई. छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले से करीब 20 किलोमीटर दूर करतला ब्लॉक के दो गांवों खरहरी और धमनागुड़ी में पिछले लगभग 200 सालों से कभी होलिका दहन और होली नहीं खेली गई.
यह भी पढ़ें; सबसे पहले इंग्लैंड की महारानी एलिजाबेथ को चलेगा पता कि कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा
इस गांव के लोगों का मानना है कि होली खेलने से गांव के देवी-देवता नाराज हो जाते हैं. होली के दिन गांव के देवता की पूजा की जाती है और सिर्फ एक-दूसरे के घर जाकर मिठाई और पकवान बांटने की परंपरा है. गांव की पंचायत पुरैना का आश्रित गांव खरहरी मड़वारानी पहाड़ के नीचे है. इस गांव की आबादी लगभग 700 है. गांव में कंवर व धनुहार आदिवासियों रहते हैं. इसी तरह ग्राम धमनागुड़ी ग्राम पंचायत पठियापाली का आश्रित ग्राम है. यहां की आबादी 500 है.
होली के दिन इस गांव के लोग कहीं बाहर नही निकलते हैं, ताकि बाहर जाने पर अनजान लोग रंग न लगा दें. गांव की सीमा है, वहां तक रंग-गुलाल खेलने पर सख्त मनाही है.
लोगों के अनुसार, 200 साल पहले जब उनके पूर्वज होलिका दहन कर रहे थे, तो उसी दौरान उनके घर में अचानक आग लग गई. इस घटना को लोगों ने दैविय प्रकोप माना. इसके बाद होली न मनाने का फैसला किया.
ग्राम धमनागुड़ी के लोगों के मुताबिक, होली के दिन गांव में अपशब्दों का प्रयोग होता था. लोग पेड़-पौधों को होलिका में काटकर डाल देते थे.
पेड़ों की कटाई और गालियों से वनदेवी नाराज हो गई और उन्होंने संदेश भेजा. इस संदेश में होलिका दहन न करने की बात कही गई थी. तब से होली नहीं मनाई जाती है. गांव के पास ही देवी का चौरा है, जहां होली के दिन सिर्फ पूजा होती है.