9 सितंबर से क्यों कांपता है तालिबान, जानिए क्या है पंजशीर घाटी के ‘बाप-बेटों’ की रोचक कहानी

9 सितंबर के करीब आने के साथ ही अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज तालिबानियों के पसीने छूटने शुरु हो गए हैं। वैसे तो तालिबानियों का समूह अफगानिस्तान की सबसे खूबसूरत लेकिन खतरनाक घाटी पंजशीर पर कब्जा करने के लिए हमले कर रहा है, लेकिन वह 9 सितंबर को लेकर अभी भी डरा हुआ है। इसका कारण है कि वह जानता है यह तारीख हर साल काल लेकर आती है।

दरअसल इस घाटी में 9 सितंबर को लेकर अफगानिस्तान की अस्मिता बचाने वाले बाप बेटों की एक ऐसी कहानी है जो 2001 से लेकर 2020 तक हर साल 9 सितंबर को तालिबानियों पर कहर ही बरपाता आया है। तालिबानी लाख कोशिशों के बावजूद इस घाटी पर 25 साल तक कब्जा नहीं कर पाए हैं। यह कहानी लॉयन ऑफ पंजशीर के नाम से मशहूर अफगानिस्तान में सोवियत युद्ध के दौरान प्रमुख मुजाहिदीन कमांडर और अफगानिस्तान के रक्षा मंत्री रहे अहमद शाह मसूद और उनके बेटे अहमद मसूद की है।

मध्य एशिया के मामलों के जानकार प्रोफेसर डीएस नेगी कहते हैं कि दरअसल 1979 में जब सोवियत संघ में अपनी फौज अफगानिस्तान में भेजनी शुरु की। अहमद मसूद ने पूरे अफगानिस्तान में इसके विरोध में अभियान शुरु कर दिया। सोवियत संघ की फौजी आमद के साथ ही तालिबान का जब जन्म होना शुरु हुआ तो अहमद शाह मसूद ने तालिबानियों का जबरदस्त विरोध किया। सोवियत सेनाओं के जाने के बाद 1992 में पेशावर समझौते के तहत उन्हें रक्षामंत्री नियुक्त किया गया। तब तक अफगानिस्तान में तालिबानियों ने कहर बरपाना शुरु कर दिया था।

1996 में जब तालिबानियों ने अफगानिस्तान में सत्ता पर कब्जा किया तो पंजशीर घाटी में लाख चाहने के बाद भी तालिबानी कब्जा नहीं कर पाए। इसका कारण था ताजिक समुदाया से ताल्लुक रखने वाले अहमद शाह मसूद ने अपने लड़ाकों के साथ तालिबानियों को खदेड़ कर पंजशीर घाटी से बाहर कर दिया था। लेकिन 9 सितंबर 2001 में अल-कायदा और तालिबानी आतंकियों ने अहमद शाह मसूद की हत्या कर दी। 9/11 के बाद अमेरिका ने अहमद शाह मसूद के नॉर्दन एलायंस के साथ मिलकर तालिबान को सत्ता से उखाड़ फेंका। यह लड़ाई तब से तालिबानियों की अहमद मसूद के साथ चली आ रही है।

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