हर महिला को जानने चाहिए ये जरूरी अधिकार, जो दिला सकते हैं समाज में आपका हक…

लीगल सर्विसेज अथॉरिटीज एक्ट 1987 के तहत बलात्कार की शिकार महिलाओं को मुफ्त कानूनी सहायता का अधिकार है। जब भी कोई महिला खुद के लिए वकील हायर करने में आर्थिक रूप से अक्षम हो, पुलिस स्टेशन अधिकारी को शहर की लीगल सर्विस ऑथोरिटी को उसके लिए वकील की व्यवस्था करने के लिए सूचना दी जाती है।

महिला गवाह को पुलिस स्टेशन से राहत 

किसी भी भारतीय महिला गवाह को अपना बयान दर्ज करवाने के लिए पुलिस स्टेशन नहीं बुलाया जा सकता। उसका बयान उसके घर पर ही दर्ज किया जा सकता है। वह चाहे तो बयान देते वक्त महिला पुलिस अधिकारी की मांग कर सकती है।

हर महिला को जानने चाहिए ये जरूरी अधिकार

द मैटरनिटी बेनिफिट एक्ट 1961 में हुए संशोधन के मुताबिक अब ऐसी कोई भी कंपनी जिसमें 10 या उससे अधिक कर्मचारी हैं तो महिला कर्मचारी को 26 हफ्ते का मातृत्व अवकाश देना जरूरी है। यह पहले दो बच्चों पर ही देना होगा।

रात को गिरफ्तारी नहीं

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक किसी महिला को सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय से पहले गिरफ्तार नहीं किया जा सकता। हां, अगर संबंधित महिला किसी गंभीर अपराध में संलग्न हो तो मजिस्ट्रेट से विशेष अनुमति लेकर उसकी गिरफ्तारी की जा सकती है।

इक्वल रिम्यूनरेशन एक्ट 1976 के तहत किसी भी कामकाजी महिला को पुुरुषों के समान कार्य के लिए समान पगार का हक दिया गया है। अगर कोई महिला किसी पुरुष के समकक्ष पद पर है तो उसे तनख्वाह कम नहीं दी जा सकती।

पहचान गुप्त रखने का अधिकार

भारतीय दंड संहिता की धारा 228 ए के अनुसार सेक्सुअल एसॉल्ट की शिकार हर महिला को अपनी पहचान गुप्त रखने का अधिकार है। मीडिया या पुलिस उस पर अपनी पहचान सार्वजनिक करने के लिए दबाव नहीं डाल सकती।

कोई प्रकाशन अगर महिला की तस्वीर छाप दे तो उसे कैद की सजा हो सकती है। महिला अपना बयान मजिस्ट्रेट के समक्ष अकेली या किसी महिला अधिकारी की उपस्थिति में दर्ज कर सकती है।

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सुप्रीम कोर्ट की विशाखा गाइडलाइन्स के मुताबिक अगर किसी कंपनी में कार्य करने वाले कर्मचारियों की संख्या दस या उससे ज्यादा है तो वहां एक सेक्सुअल हरेसमेट कंप्लेंट्स कमेटी का गठन जरूरी है, जिसकी मुखिया एक महिला होनी चाहिए।

पैतृक संपत्ति पर अधिकार 

हिंदू उत्तराधिकार एक्ट में 2005 में किए गए संशोधन के मुताबिक पिता की संपत्ति पर जितना हक बेटों का होता है, उतना ही बेटियों का माना गया है। अगर उनके भाई उन्हें जायदाद में से हिस्सा न दें तो उन्हें अपने पिता की संपत्ति पर दावा करने का पूरा हक है।

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