सोनिया गांधी ने केंद्र सरकार पर साधा निशाना कहा- हर नागरिक हो रहा है कमजोर…

लोकसभा में सोमवार को सरकार और विपक्ष के बीच तीखी तकरार हुई। लेकिन इसके बावजूद सूचना का अधिकार कानून (आरटीआई) संशोधन विधेयक निचले सदन से पारित हो गया। अब इसे उच्च सदन में पेश किया जाएगा। वहीं इसी बीच यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी ने केंद्र सरकार पर पत्र लिखकर निशाना साधा है। उनका कहना है कि सरकार अपने बहुमत का इस्तेमाल करके हर नागरिक को अशक्त बना रही है।

 

 

बतादें की सोनिया गांधी ने पत्र लिखकर कहा हैं की यह साफ हो गया हैं की वर्तमान केंद्र सरकार आरटीआई अधिनियम को एक रुकावट के तौर पर देखती है और केंद्रीय सूचना आयोग की स्थिति और स्वतंत्रता को नष्ट करना चाहती है। जिसे केंद्रीय चुनाव आयोग और केंद्रीय सतर्कता आयोग के साथ रखा गया था। केंद्र सरकार अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए अपने विधायी बहुमत का उपयोग कर सकती है लेकिन इस प्रक्रिया में वह इस देश के हर नागरिक को अशक्त बना रही है।

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खबरों के मुताबिक विपक्ष के आरोपों से इतर सरकार ने लोकसभा में कहा था कि उसका इरादा केंद्रीय सूचना आयोग की स्वायत्तता खत्म करना और आरटीआई कानून को कमजोर नहीं बल्कि और मजबूत बनाने का है। बहस के दौरान कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने कहा कि संशोधन पर सरकार इतनी हड़बड़ी में क्यों है?

जहां इसके जरिए सरकार खतरनाक कदम उठा रही है। लेकिन संशोधन से सरकार एकपक्षीय तरीके से सूचना आयुक्तों के वेतन, भत्ते और कार्यकाल का फैसला करेगी। यह सूचना के अधिकार की रूपरेखा को कमजोर करने के लिए लाया गया है। इनके जरिए सरकार ताकतवर कानून को बिना पंजे वाला शेर बनाने पर आमदा है।

दरअसल लोकसभा में चर्चा के दौरान कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि विपक्ष आरटीआई कानून को लेकर भ्रम फैला रहा है। मोदी सरकार ने पहले कार्यकाल में 24 घंटे और सातों दिन सूचना हासिल करने की व्यवस्था की। नेता प्रतिपक्ष न होने के कारण नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने के लिए विपक्ष के सबसे बड़े दल के नेता को पैनल में शामिल किया। 2005 में जब यह कानून लाया गया, तब इसके लिए नियम नहीं बनाए गए। संशोधन में सांविधानिक संस्था की स्वायत्तता और अधिकार में रत्ती भर कटौती नहीं की गई है।

वहीं आयोग के सदस्यों के अधिकार भी जस के तस हैं। लेकिन मुख्य सूचना आयुक्त और आयुक्तों के वेतन, भत्ते और सेवा शर्तें मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों के बराबर होंगी। पहले मुख्य सूचना आयुक्त को सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश के समान वेतन भत्ता मिलता था।विपक्ष के आरोपों से इतर सरकार ने लोकसभा में कहा था कि उसका इरादा केंद्रीय सूचना आयोग की स्वायत्तता खत्म करना और आरटीआई कानून को कमजोर नहीं बल्कि और मजबूत बनाने का है।

जहां बहस के दौरान कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने कहा कि संशोधन पर सरकार इतनी हड़बड़ी में क्यों है? इसके जरिए सरकार खतरनाक कदम उठा रही है। संशोधन से सरकार एकपक्षीय तरीके से सूचना आयुक्तों के वेतन, भत्ते और कार्यकाल का फैसला करेगी। यह सूचना के अधिकार की रूपरेखा को कमजोर करने के लिए लाया गया है। इनके जरिए सरकार ताकतवर कानून को बिना पंजे वाला शेर बनाने पर आमदा है।

लोकसभा में चर्चा के दौरान कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि विपक्ष आरटीआई कानून को लेकर भ्रम फैला रहा है। मोदी सरकार ने पहले कार्यकाल में 24 घंटे और सातों दिन सूचना हासिल करने की व्यवस्था की। नेता प्रतिपक्ष न होने के कारण नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने के लिए विपक्ष के सबसे बड़े दल के नेता को पैनल में शामिल किया। 2005 में जब यह कानून लाया गया, तब इसके लिए नियम नहीं बनाए गए। वहीं संशोधन में सवैधानिक संस्था की स्वायत्तता और अधिकार में रत्ती भर कटौती नहीं की गई है। आयोग के सदस्यों के अधिकार भी जस के तस हैं।

देखा जाये तो मुख्य सूचना आयुक्त और आयुक्तों के वेतन, भत्ते और सेवा शर्तें मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों के बराबर होंगी। पहले मुख्य सूचना आयुक्त को सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश के समान वेतन भत्ता मिलता था।लेकिन वेतन-भत्ते और शर्तें केंद्र सरकार तय करेगी, मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों का कार्यकाल पांच की जगह तीन साल का होगा।

 

 

 

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