सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसला, कहा- अपराध के लिए स्किन टू स्किन टच जरूरी नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को बॉम्बे हाईकोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया जिसमें कहा गया था कि स्किन टू स्किन टच के संपर्क के बिना नाबालिक के स्तन को छूना यौन उत्पीड़न के रूप में परिभाषित नहीं किया जा सकता है। तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि गलत मंशा के तहत किसी भी तरह से शरीर के सेक्सुअल हिस्से का स्पर्श करना पॉक्सो एक्ट का मामला माना जाएगा।

इस तीन सदस्यीय कमेटी में जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस रवींद्र भट्ट और जस्टिस बेला त्रिवेदी शामिल थे। अदालत ने कहा कि कपड़े के ऊपस से बच्चे का स्पर्श यौन शोषण नहीं है। इस तरह की परिभाषा बच्चों को शोषण से बचाने के लिए पॉक्सो एक्ट के मकसद को ही खत्म करके रख देगी। वहीं शीर्ष अदालत की ओर से इस मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट से बरी हुए आरोपी को भी दोषी ठहराया गया है। यही नहीं आरोपी को तीन साल की सजा दी गयी है।

गौरतलब है कि बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच की ओर से यौन उत्पीड़न के एक आरोपी को यह कहते हुए बरी कर दिया गया था कि नाबालिग के निजी अंगों को स्किन टू स्किन संपर्क के बिना छूना या टटोलना पॉक्सो एक्ट के तहत नहीं आता है। अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने भी इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली थी। वहीं अब उच्चतम न्यायालय ने हाईकोर्ट के इस फैसले को बदलते हुए बड़ा फैसला सुना दिया है।

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