जानिए कहाँ मिली सदियों से विलुप्त प्राचीन नदी चंद्रभागा

सदियों से विलुप्त बेंगलुरु। विशेषज्ञों की एक समिति ने हाल ही में पुराणों में वर्णित सदियों से विलुप्त सरस्वती नदी की भारत के पश्चिमोत्तर हिस्से में मौजूदगी की पुष्टि की। इसके बाद अब भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान खड़गपुर के वैज्ञानिकों ने एक और ‘विलुप्त’ भारतीय नदी के साक्ष्य पाने का दावा कर रहे हैं।

इस प्राचीन नदी का नाम चंद्रभागा है और माना जा रहा है कि 13वीं शताब्दी में बने कोणार्क के सूर्य मंदिर से दो किलोमीटर की दूरी पर इसका अस्तित्व था। ओडिशा में स्थित कोणार्क मंदिर यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थलों में शामिल है।

करेंट साइंस जरनल में प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है कि मंदिर के आसपास किसी जल स्रोत की मौजूदगी अभी नजर नहीं आ रही है लेकिन इस ‘पौराणिक नदी का जिक्र प्राचीन साहित्य में प्रमुखता के साथ मिलता है।’

उनका कहना है कि कोणार्क से जुड़ी लगभग सभी पौराणिक कहानियों में इस मंदिर के आसपास चंद्रभागा नदी की मौजूदगी का संकेत मिलता है। चित्रों व तस्वीरों में भी नदी को दर्शाया गया है।

आईआईटी के अध्ययन का मकसद इस मिथक की सच्चाई जांचना था। अध्ययनकर्ताओं ने ऐतिहासिक साक्ष्यों के मेल से एकीकृत भूगर्भीय और भू-भौतिकीय अन्वेषण और उपग्रह से मिले आंकड़ों के विश्लेषण के जरिए यह अध्ययन किया। अमेरिका के लैंडसेट और टेरा सेटलाइट से प्राप्त तस्वीरों और नासा के अंतरिक्ष यान एंडेवर के रडार टोपाग्राफिक मिशन के वर्ष 2000 की तस्वीरों का इस्तेमाल किया गया।

उनकी रिपोर्ट के अनुसार सेटेलाइट से मिली तस्वीरों और गूगल अर्थ की तस्वीरों से प्राचीन नदी के अवशेष का पता चलता है। इसके सूर्य मंदिर से उत्तर से समुद्रतट के लगभग समानांतर गुजरने का पता चलता है।

वैज्ञानिकों की रिपोर्ट के मुताबिक, नदी के अवशेष का धरती के नीचे की चीजों का पता लगाने वाले रडार का इस्तेमाल करने से भी इसका पता चलता है। यहां की सतह के नीचे अंग्रेजी के वी के आकार में नदी घाटी है।

क्षेत्र के अध्ययन से पता चला है कि संभावित नदी के अवशेष के गुण का पता दलदली जमीन और जलकुंभी से भरा हुआ है। इसके अलावा भी नदी होने के कई संकेत मिले हैं।

वैज्ञानिकों का कहना है कि सभी प्रमाण नदी के होने हैं। पूरे क्षेत्र में कम गाढ़ा तलछट मौजूद है। सभी तथ्यों और सेटेलाइट से मिले चित्रों से नदी के विभिन्न स्थानों पर जल स्रोत की पट्टियां दिखती हैं।

आईआईटी की टीम के अनुसार इस तरह की नदी के अवशेष की पहचान से खारे पानी वाले इस क्षेत्र में ताजा जल क्षेत्र का निरूपण किया जा सकता है। यही नहीं, ओडिशा के तटीय इलाके में पेयजल की समस्या को भी आंशिक रूप से कम किया जा सकता है।

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