संजय खान बनाएंगे एक ऐसे ब्रिगेडियर पर बायोपिक जिसको पाकिस्तान अपनी सेना का मुखिया बनाने को था तैयार

अपने देश के लिए बहुत कम ऐसे लोग होते हैं जो शोहरत और नाम को छोड़ अपने फर्ज और देशप्रेम को चुनते हैं. ऐसे लोगों को दुनिया याद रखती है और कई बार नहीं भी लेकिन इससे उनके देशप्रेम की भावना कम नहीं होती. अब ऐसे ही देशप्रेमी की कहानी लेकर आने वाले हैं हिंदी सिनेमा के वरिष्ठ अभिनेता, निर्माता और निर्देशक संजय खान. हम बात कर रहें हैं भारतीय सेना के ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान  की, जिनको पाकिस्तान ने देश के बंटवारे के समय अपनी सेना का मुखिया बनाने का ऑफर दिया था.

 

पाकिस्तान के इस प्रस्ताव को ठुरका कर उन्होंने भारतीय फौज को अपनी कर्मभूमि बनाया और शहीद हुए तो पाकिस्तानी फौज से लड़ते हुए। देश के इस सच्चे सपूत की शव यात्रा की अगुआई तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने की थी। ब्रिगेडियर  उस्मान की जीवनी पर अब एक फिल्म बनने जा रही है।

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हिंदी सिनेमा के वरिष्ठ अभिनेता, निर्माता और निर्देशक संजय खान अपने बेटे जायद खान को लेकर 1947-48 के भारत-पाकिस्तान के युद्ध में शहीद हुए ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान की बायोपिक बनाने जा रहे हैं। जायद इस फिल्म में मोहम्मद उस्मान का ही किरदार निभाएंगे जो उस समय में इंडियन आर्मी की सबसे ऊंची रैंक के अफसर थे। संजय खान इस फिल्म की पटकथा को पिछले दो साल से लिख रहे हैं और हाल ही में उन्होंने इसको पूरा भी कर लिया है। फिल्म की शूटिंग इस साल के अंत में या अगले साल शुरू होगी।

 

जायद खान पिछले पांच साल से फिल्मों की दुनिया से दूरी बनाए हुए हैं। उन्हें अंतिम बार एक छोटे बजट की ड्रामा फिल्म ‘शराफत गई तेल लेने’ में देखा गया था। वह कुछ बड़ी फिल्मों जैसे; मैं हूं ना, दस, ब्लू और तेज में कुछ बड़े कलाकारों जैसे; शाहरुख खान, अजय देवगन, अक्षय कुमार और संजय दत्त के साथ नजर आए और अपने अभिनय से दर्शकों को अपनी ओर आकर्षित भी किया। लेकिन, एक सोलो ब्लॉकबस्टर की उनके करियर को अब भी दरकार है।

 

संजय खान का पिछले लगभग दो दशक से मनोरंजन की दुनिया से कोई लेना-देना नहीं रहा है। एक अभिनेता के रूप में उनकी अंतिम फिल्म वर्ष 1986 में आई ‘काला धंधा गोरे लोग’ है। इस फिल्म को संजय ने खुद निर्देशित भी किया। फिल्में छोड़ने के बाद संजय टीवी से जुड़ गए और वह 1990 में आए एक धारावाहिक ‘द सोर्ड ऑफ टीपू सुल्तान’ के कर्ता धर्ता रहे। संजय ने इस शो को लिखा और निर्देशित भी किया। इसके प्रोड्यूसर और मुख्य अभिनेता भी वह खुद ही थे।

 

ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान पर बंटवारे के वक्त पाकिस्तानी नेताओं का बहुत दबाव था कि वह पाकिस्तानी सेना ज्वाइन कर लें। यहां तक कि उन्हें पाकिस्तानी आर्मी का मुखिया बनाने की भी बात कही गई। लेकिन, उस्मान ने अपनी जन्मभूमि और अपनी मातृभूमि के साथ रहने का एलान किया। अपने जन्मदिन से 12 दिन पहले मात्र 35 साल की उम्र में ब्रिगेडियर उस्मान पाकिस्तानी सेना से लड़ते हुए शहीद हो गए। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और उनके कैबिनेट के सदस्यों ने ब्रिगेडियर की शव यात्रा की अगुआई की थी। अदम्य साहस और सेना का शानदार नेतृत्व करने के लिए उस्मान को भारतीय सेना के दूसरे सबसे बड़े सम्मान महावीर चक्र से पुरस्कृत किया गया।

 

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