जानिए, क्यों अधूरी है वेश्यालय की मिट्टी के बिना मां की प्रतिमा

वेश्यालय की मिट्टीहर तरफ नवरात्र की धूम मची हुई है. नवरात्र में मां दुर्गा की मूर्ति का भी विशेष महत्व होता है. मान्यता है कि मां की प्रतिमा वेश्यालय की मिट्टी के बिना अधूरी होती है. लेकिन क्या कभी ये सोचा है कि ऐसा क्यों है.

दुर्गा पूजा की मूर्तियां बनाने में कारीगर कई परंपराओं का पालन करते हैं. इनमें से एक है दुर्गा की मूर्ति बनाने के लिए वेश्यालयों से मिट्टी लेकर आना.

फिल्मों की बात की जाए तो शाहरुख खान की हिट फिल्म देवदास का वो सीन तो याद ही होगा. जब ऐश्वर्या यानी पारो चंद्रमुखी के पास मां दुर्गा की मूर्ति बनाने के लिए उनके आंगन की एक मुट्ठी मिट्टी लेने जाती हैं.

इस फिल्म में इसे बखूबी दर्शाया गया है. भले ही फिल्म में पारो और चंद्रमुखी को मिलाने के लिए इस सीक्वेंस को लाया गया. लेकिन इससे समाज के कथित तौर पर घृणित पेशे की मदद से शुरुआत करना काफी रोचक है.

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मां की मूर्ति तब तक अधूरी रहती है जब तक उसमें वेश्यालय की मिट्टी न मिला ली जाए.

पुराने समय में पुजारी और कुमार टोली के मूर्तिकार वेश्यालयों के बाहर जाते और भीख की तरह वेश्याओं से ये मिट्टी मांगते. मिट्टी देने वाली वेश्याएं चाहें उनका मजाक उड़ाएं या मना कर दें, उन्हें मांगते रहना पड़ता है.

इस परंपरा के पीछे दो कारण बताए जाते हैं. मान्यता है कि देवी ने जब महिषासुर का वध करने के लिए अवतार लिया तो हर वर्ग की स्त्री को अपनी शक्ति का रूप माना. वेश्याएं हमारे समाज का वो वर्ग है, जो पुरुषों के कर्मों के चलते समाज में सबसे निचले दर्जे पर रहता है. ऐसे में साल में एक बार समाज का कथित रूप से सबसे ताकतवर और सम्मानित पुरुष यानी पुरोहित, समाज के सबसे निचले पायदान पर खड़ी महिला के दरवाजे पर जाकर भीख मांगता है.

दूसरी मान्यता इससे अलग है. इसमें माना जाता है कि आदमी जब किसी वेश्यालय में घुसता है तो अपना सारा रुतबा, इज्जत, मान-सम्मान पुण्य और सारे नकाब चौखट पर उतार देता है. अंदर घुसते ही वो सिर्फ एक पुरुष होता है. इसलिए चौखट के इस पार की मिट्टी सबसे पवित्र होती है, जो दुनिया भर के पुरुषों के उजले चरित्र सोख लेती है.

 

 

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