तीसरे विश्व युद्ध की दस्तक दे रहा है आर्कटिक, ताकतवर देशों में मची कब्ज़े को लेकर खलबली

रूस ने आर्कटिकनई दिल्ली| साउथ-चाइना समुद्र विवाद अभी हल भी नहीं हुआ और अब प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर आर्कटिक पर भी ताकतवर देशों में इसके कब्ज़े को लेकर होड़ मच गयी है. कनाडा, अमेरिका और नॉर्वे के अलावा चीन भी यहाँ काफी सक्रियता दिखा रहा हैं. लेकिन अब इन देशों के साथ रूस ने भी आर्कटिक में अपनी गतिविधियाँ तेज कर दी है. सोवियत संघ के दौर में रूस यहां काफी गतिशील था. हालाँकि सोवियत संघ के खात्मे के बाद से रूस की उपस्थिति आर्कटिक में खत्म मानी जा रही थी.

1950 में आर्कटिक क्षेत्रफल के भीतर अमेरिका और रूस के बीच हुई टक्कर में रूस ने लेनिन नामक जहाज को बनाकर एक बड़ी बढ़त हासिल की थी. लेनिन उस समय दुनिया का पहला न्यूक्लियर जहाज था. अब रूस आर्कटिक में नए परमाणु आइसब्रेकर जहाज बनाने और इन्हें यहां तैनात करने के अभियान में जोर-शोर से लगा है.

रूस यहां पर छोड़ दिए गए अपने सैन्य, वायु व रेडार केंद्रों को दोबारा शुरू करने में जुटा है. रूस आर्कटिक में करीब 5 लाख स्क्वेयर मील पर अपना दावा करता है. साथ ही रूस यहां पर तीन न्यूक्लियर आइसब्रेकर जहाजों का निर्माण कर रहा है. इसमें से एक दुनिया का सबसे बड़ा परमाणु क्षमता वाला जहाज है. इसके अलावा रूस के पास आर्कटिक में 40 ब्रेकर्स का बेड़ा भी है. इनमें से 6 परमाणु क्षमता वाले जहाज हैं. किसी और देश के पास आर्कटिक में न्यूक्लियर जहाजों का इतना बड़ा बेड़ा नहीं है.

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