
लखनऊ| राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने शुक्रवार को यहां कहा कि ‘हमारे शिक्षण संस्थानों में असहिष्णुता, पूर्वाग्रह और घृणा के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए, क्योंकि ये संस्थान विचारों के मुक्त आदान-प्रदान के लिए हैं।’ मुंबई विश्वविद्यालय के विशेष दीक्षांत समारोह में राष्ट्रपति ने कहा कि प्राचीन भारत में नालंदा और तक्षशिला जैसे ज्ञान के केंद्र हुआ करते थे, जहां उच्च स्तर की दार्शनिक बहसें और चर्चाएं हुआ करती थीं।
मशहूर कृषि विज्ञानी एम.एस.स्वामीनाथन को मानद डीलिट उपाधि से सम्मानित करने के मौके पर राष्ट्रपति ने कहा कि देश महज एक भूगोल नहीं होता, बल्कि यह एक विचार और संस्कृति को प्रदर्शित करता है।
उन्होंने कहा, “चर्चा और संवाद हमारे संस्कारों और जीवन का हिस्सा रहे हैं। इन्हें छोड़ा नहीं जा सकता। हमें संकीर्ण मानसिकता और विचारों को पीछे छोड़कर मुक्त चर्चा, यहां तक कि बहसों का भी स्वागत करना चाहिए।”
प्रणब ने कहा कि आधुनिक भारतीय विश्वविद्यालयों को हमारी महान परंपराओं को नया जीवन देना होगा और हर हाल में विभिन्न दृष्टिकोणों, विचारों और दर्शनों का झंडाबरदार बनना होगा।
राष्ट्रपति ने कहा कि उच्च शिक्षा व्यवस्था की राष्ट्र के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका है और यह अर्थव्यवस्था के विभिन्न हिस्सों को प्रभावित करती है। अर्थव्यवस्था का विकास कई खास तरीकों से उच्च शिक्षा पर निर्भर करता है।
स्वामीनाथन की तारीफ करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि “उनके काम देश की जिंदगी में व्यापक बदलाव की वजह बने हैं। उन्हीं की वजह से आज भारत खाद्यान्न उत्पादन और निर्यात में दुनिया के कुछ आगे के देशों में शुमार किया जा रहा है।”



