राजीव गांधी से न होती ये गलती तो 38 साल पहले ही ‘आजाद’ हो जातीं मुस्लिम महिलाएं

यूनिफॉर्म सिविल कोडनई दिल्ली : समान नागरिक संहिता या यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने के लिए मोदी सरकार अपनी पूरी ताकत लगाने में जुटी हुई है। साथ ही इसे लेकर देश में राजनीति जोरों पर है। मुस्लिम पसर्नल लॉ बोर्ड जहां इसके पुरजोर विरोध करने में लगा हुआ है वहीँ मुस्लिम समुदाय की महिलाएं पीएम मोदी के साथ खड़ी हैं। लेकिन आपको यह जानकर हैरानी होगी कि मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक का दंश किसी और ने नहीं बल्कि इस समुदाय का रहनुमा होने का दावा करने वाली कांग्रेस ने दिया है।

अभी भारत में इसके लिए अलग-अलग नियम हैं। मतलब संपत्ति और तलाक के नियम हिंदुओं को लिए कुछ और हैं, और मुसलमानों के लिए कुछ और ईसाइयों के लिए अलग।  इसके कानून में संपत्ति के अधिकार के अलावा शादी, तलाक, गुजारा भत्ता, बच्चा गोद लेने और वारिस तय करने जैसे मुद्दों पर सभी के लिए एक कानून होगा।

बीजेपी ने लोकसभा चुनावों के दौरान अपने घोषणा-पत्र में यूनिफॉर्म सिविल कोड कानून लागू करने की बात कही थी। अब केंद्र में दो साल से ज्यादा होने के बाद मोदी सरकार इसे अमलीजामा पहनाने में जुट गयी है। इस पर पीएम मोदी भी साफ़ कर चुके हैं कि यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने का अर्थ यह नहीं है कि हिंदू मान्यताओं के हिसाब से सभी नागरिकों को रहना पड़ेगा।

यूनिफॉर्म सिविल कोड पर भारी पड़ा वोट बैंक

पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के एक गलत फैसला लेने के कारण आज समाज में मुस्लिम महिलाएं अलग-थलग होकर अपनी जिंदगी जीने को मजबूर हैं। राजीव गांधी के इस गलत फैसले का जिक्र पूर्व कांग्रेस नेता और वर्तमान राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपनी किताब ‘द टर्बुलेंट इयर्स :1980-1996’ में किया है।

किताब में शाह बानो प्रकरण का जिक्र है जिसे प्रणब मुखर्जी ने राजीव गांधी की बड़ी गलती बताया है। दरअसल इंदौर में रहने वाली शाहबानो के कानूनी तलाक भत्ते पर देशभर में राजनीतिक बवाल मच गया था। सुप्रीम कोर्ट के फैसले को एक साल के भीतर मुस्लिम महिला (तलाक में संरक्षण का अधिकार) अधिनियम, (1986) पारित कर राजीव गांधी सरकार ने पलट दिया था।

ये था पूरा मामला-

1978 में इंदौर की रहने वाली मुस्लिम महिला शाहबानो को उसके पति मोहम्मद खान ने तलाक दे दिया था। पांच बच्चों की मां 62 वर्षीय शाहबानो ने गुजारा भत्ता पाने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ी और पति के खिलाफ गुजारे भत्ते का केस जीत भी लिया।

केस जीतने पर भी नहीं मिला हर्जाना

शाहबानो को सुप्रीम कोर्ट में केस जीतने के बाद भी पति से हर्जाना नहीं मिल सका। सुप्रीम कोर्ट के फैसले का ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने शाहबानो केस में पुरज़ोर विरोध किया।

इस विरोध के बाद  1986 में राजीव गांधी की सरकार ने मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 1986 पारित किया.  इस अधिनियम के तहत शाहबानो को तलाक देने वाला पति मोहम्मद गुजारा भत्ता के दायित्व से मुक्त हो गया था।

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