यही है वो माता का मंदिर जहां औरंगजेब ने टेके थे अपने घुटने, शक्ती के आगे हुआ था नतमस्तक

नवरात्र के समय में लोग दूर-दूर तक देवी मां के दर्शन के लिए जाते है। इसी तरह राजस्थान में एक ऐसा मंदिर है जहां पर देवी मां को चढ़ावे के रूप में शराब चढ़ता है। इस मंदिर को जीण माता के नाम से जाना जाता है। जीण माता का यह मंदिर सीकर जिले में है. जयपुर से करीब 120 किमी दूर है। ऐसा बताया जाता है कि जीण माता का जन्म घांघू गांव के एक चौहान वंश के राजा घंघ के घर में हुआ था। जीण का एक बड़ा भाई था हर्ष। दोनों भाई बहनों में बहुत प्रेम था। लोग जीण को देवी और हर्ष को शिव का रूप मानते थे। ऐसा कहा जाता है कि जीण एक दिन अपनी भाभी के साथ सरोवर से पानी भरने गयी वहीं पर जीण और उनकी भाभी में बहस हो गयी की हर्ष सबसे ज्यादा किससे प्रेम करते है।

उन्होंने शर्त रखी हर्ष जिसका मटका सबसे पहले सिर से उतार कर नीचे रखेंगे वो उसे ही सबसे ज्यादा प्रेम करते है। फिर दोनों लोग मटका लेकर हर्ष के सामने पहुंची, सबसे पहले हर्ष ने अपनी पत्नी का मटका नीचे उतारा और जीण शर्त हार गई। उसके बाद जीण नाराज होकर अरावली पर्वत के शिखर पर भगवती की तपस्या करने में लग गयी और हर्ष उसे मनाने गया तो जीण तपस्या में लीन थी। उसके बाद हर्ष भी भैरव भगवान की तपस्या करने लगा और फिर दोनों जीणमाता धाम और हर्षनाथ भैरव के रूप में प्रसिद्ध हो गए। ऐसा कहा जाता है कि जीण माता की इस मंदिर को तुड़वाने के लिए औरंगजेब ने सैनिक भेजे थे देवी की महिमा अपरम्पार है उन्होंने मधुमक्खियों के रूप में आकर मंदिर की रक्षा थी।

ऐसा होते देख गांव वालो की माता के प्रति श्रद्धा और बढ़ गयी और औरंगजेब अपने कार्यों में असफल हो गया। एक बार जब औरंगजेब बीमार पड़ा तो उसे उसी समय अपनी गलती का एहसास हुआ और जीण माता के मंदिर में हर महीने सवा मन तेल चढ़ाने का वचन दिया। जब उसने माफी मांगी तो माता ने उसे माफ कर दिया। उसी दिन से मुगल बादशाह को माता के प्रति श्रद्धा बढ़ गयी। इस मंदिर में जीण माता के दर्शन करने लोग बाहर से भी आते है। यहां नवरात्रि के समय में नौ दिन मेला लगता है और लोग बड़ी धूम-धाम से माता की पूजा करते हैं।

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