मोदी सरकार के बड़े फैसले की रिपोर्ट डिस्क्लोज, बैकों पर लग जाएंगे ताले, अगर नहीं मानी ये बात

बैंकिंग सिस्टमनई दिल्ली। सरकार भले ही बैंकिंग सिस्टम को सही करने की बात कह रही हो लेकिन सच तो ये है कि चाह कर भी इसे अंजाम नहीं दिया जा सकता है। इसके पीछे भी नोटबंदी सबसे बड़ा कारण है। इसी के चलते ही खजाने में इतना पैसा नहीं कि सरकार प्रणाली सुधर पाए।

बैंकिंग सिस्टम सुधारने को चाहिए करोड़ों

सरकार को 1.80 लाख करोड़ रुपये की जरूरत बैंकिंग सिस्टम्स की ‘मरम्मत’ के लिए है। लेकिन खजाना खाली होने के के कारण ही सरकार ने बैंकों से साफ कह दिया है कि उनको पैसा नहीं मिल सकता। ऐसे में वे अपना कारोबार और फायदा बढ़ाने के लिए खुद ही इंतजाम करें।

सरकार की तरफ से बैंकों को दो टूक कहा गया है कि अगर किसी बैंक की कोई शाखा घाटे में चल ही हो तो उसे बंद कर दें या अन्य शाखाओं के साथ उसका मर्जर कर दिया जाए। पैसे के लिए बैंकों को अपने नॉन-कोर ऐसेट्स बेचने को भी कहा गया है। यह प्रक्रिया कुछ सरकारी बैंकों ने शुरू कर दी है।

ऐसे में जल्द ही सरकारी बैंकों की सर्विसेज का महंगा होना तय है। वहीं अगर बैंकों ने नुकसान में चलने वाली विदेशी और देसी शाखाओं को बंद किया या विलय किया तो कर्मचारियों की छंटनी भी होगी। इस बीच इंडियन ओवरसीज बैंक ने मलेशिया में घाटे में चलने वाली शाखा को बंद करने की घोषणा की है।

सूत्रों का कहना है कि नोटबंदी के दौरान सरकार ने एटीएम से कैश निकालने पर सभी चार्ज खत्म कर दिये थे। इससे बैंकों को काफी नुकसान हुआ है। कई बैंकों की हालत तो यह है कि उनको अपने ब्रांच के साथ एटीएम को चलाने में दिक्कतें आ रही हैं। लागत खर्च निकल नहीं रहा है।

नोटबंदी के कारण सरकारी और प्राइवेट बैंकों के क्रेडिट ग्रोथ में जोरदार गिरावट आई है। बैंकों के पास, जहां लोन लेने वालों की लाइनें लगती थीं, अब लोन लेने वालों की संख्या घटकर आधी रह गई है।

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