पीएम मोदी ने खेला सबसे बड़ा दांव, अगर चूके तो जिंदगी भर नहीं भुला पाएंगे दर्द

मोदी का दांवनई दिल्ली। यूपी पर अपनी सत्ता काबिज करने के बाद भाजपा फूली नहीं समा रही है। ऐसा हो भी क्यों नहीं। भाजपा ने बीते विधानसभा चुनावों में पूर्ण समर्थन जो हासिल किया है। अब जब यूपी के नए सीएम के रूप में योगी आदित्यनाथ को सत्ता थमा दी गई है तो इस खुशी में चार-चाँद लग गए। माना जा रहा है कि योगी को सीएम की कुर्सी पर बैठाने के साथ भाजपा संग पीएम मोदी ने साल 2019 के लिए बड़ा दांव खेला है। ऐसे में बहुत से लोगों का मानना है कि कहीं पीएम मोदी का दांव उलट न जाए। क्योंकी इतिहास दोहराता जरूर है, इसी कारण ज्यादातर लोगों के मन में यह संशय बना हुआ है।

मोदी का दांव कहीं उलट न जाए

ख़बरों के मुताबिक़ भारतीय जनता पार्टी ने बड़ा रिस्क (जोखिम) लेते हुए कट्टर हिन्दूवादी छवि के नेता योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाया है।

भाजपा के लिए यह बड़ा रिस्क इसलिए भी है क्योंकि योगी आदित्यनाथ अब तक गोरखपुर और पूर्वांचल में निर्विवाद रूप से बड़े नेता माने जाते रहे हैं।

उनके दरबार में न केवल हिन्दू बल्कि मुस्लिम जनमानस भी उसी भाव और उम्मीद से जाते रहे हैं और लाभान्वित होते रहे हैं, जिस भावना और आकांक्षा के साथ एक हिन्दू फरियादी पहुंचता है।

ये कहना गलत न होगा कि गोरखपुर में महाराज यानी योगी आदित्यनाथ का सिक्का चलता रहा है। अब मुख्यमंत्री बनते ही आज के राजनीतिक परिदृश्य में आदित्यनाथ का कद अब उत्तर प्रदेश में सबसे बड़े भाजपा नेता के रूप में बन चुका है।

केन्द्रीय स्तर पर इतना बड़ा कद सिर्फ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का है। यानी भाजपा ने योगी आदित्यनाथ को एक कट्टर हिन्दूवादी छवि से निकालने के लिए बड़ा दांव चला है।

इसके साथ ही पार्टी ने योगी को भाजपा की अगली पौध के रूप में भी तैयार करने के लिए दूर की कौड़ी फेंकी है।

बता दें 1990 से लेकर 2010 के दशक में भाजपा में सबसे ताकतवर नेता के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी की जोड़ी जानी जाती थी।

उस वक्त पीएम मोदी की राजनैतिक हैसियत कुछ भी नहीं थी। साल 2001 में पहली बार विधानसभा में प्रवेश कर उन्होंने मुख्यमंत्री पद पर कब्जा किया। साल 2002 में हुए गुजरात दंगे के बाद नरेंद्र मोदी की छवि कट्टर हिन्दूवादी नेता के रूप में बनी।

मोदी की यह छवि लंबे समय तक उनके साये की तरह पीछे पड़ी रही लेकिन चार बार गुजरात की बोगडोर संभालने वाले इस शख्स ने धारे-धीरे अपनी छवि विकास पुरूष के रूप में स्थापित कर ली और साल 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले वो अपनी दमदार शख्सियत की बदौलत भाजपी की तरफ से देश के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार हो गए।

इस हकीकत को उनके गुरु लालकृष्ण आडवानी बस देखते रह गए। आज समय का वह दौर है जब भाजपा में पीएम मोदी से दमदार, ताकतवर और प्रभावशाली चेहरा दूसरा और कोई नहीं।

यहां तक हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों में हासिल की गई जीत भी ‘मोदी ब्रांड’ को कैश कर ही हासिल की गई।

अब जब योगी को यूपी की गद्दी पर विराजित कर दिया है तो कहीं न कहीं वहीं इतिहास एक बार फिर लोगों की आंखों के सामने नाच रहा है जो कभी नरेंद्र मोदी की शुरुआत में घटा था।

अब जब 2001 से 2014 तक के सफर में भाजपा के पूर्व प्रधानमंत्री और उप प्रधानमंत्री (अटल-आडवाणी) की जगह पर नरेंद्र मोदी काबिज हो सकते हैं तो आगे चलकर उनकी जगह कोई और क्यों नहीं हासिल कर सकता। अब भले यह बदलाव 2019 में न सही 2024 में ही हो जाए। लेकिन अब इस बात के चर्चे तो शुरू हो ही गए हैं।

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