
नई दिल्ली। मोदी सरकार जब से सत्ता में आई है, वह देश निर्माण और उसके विकास में हर वो कठोर कदम उठा रही है जिससे देश का भला हो। ऐसे में विरोधी और असमाजिक तत्व सरकार का विरोध करते हैं और देश में डर का माहौल उत्पन्न करते हैं। इसके बावजूद मोदी ने फिर देश हित के लिए एक बड़ा फैसला लेने का निर्णय कर लिया है। नरेंद्र मोदी सरकार अब जल्द ही रोहिंग्या मुस्लिमों को लेकर फैसला करने वाली है। बीते कई वर्षों से भारत में आकर बसे रोंहिग्या मुस्लिमो को केंद्र सरकार अब गिरफ्तार कर वापिस म्यामांर भेजने का निर्णय कर सकती है।
इससे भारत में बसे लगभग 40,000 हजार रोहिंग्या मुस्लिमों को भारत छोड़ना होगा। सूत्रों के मुताबिक गृह मंत्रालय फॉरनर्स एक्ट के तहत इन लोगों को वापिस म्यायांर भेजेगी। ये लोग भारत में समुद्र, बांग्लादेश और म्यायांर की सीमा से घुसपैठ कर भारत में आ बसे।
बताया जा रहा है कि इस मुद्दे को लेकर सोमवार को गृह मंत्रालय में केंद्रीय गृह सचिव राजीव महर्षि की अध्यक्षता में बैठक हुई है, जिसमें इनकी पहचान, गिरफ्तारी और देश से बाहर भेजने की रणनीति पर बातचीत की गई है। इस बैठक में जम्मू-कश्मीर के डीजीपी, चीफ सेकेट्ररी ने भी हिस्सा लिया।
भारत में सबसे ज्यादा रोंहिग्या मुस्लिम जम्मू में बसे हैं, यहां करीब 10,000 रोंहिग्या मुस्लिम रहते हैं। हालांकि संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार संगठन के आंकड़ों के मुताबिक फिलहाल देश में 14,000 रोहिंग्या मुस्लिम शरणार्थी रहते हैं।
घटना क्या है
-दरअसल म्यांमार सरकार ने 1982 में राष्ट्रीयता कानून बनाया था जिसमें रोहिंग्या मुसलमानों का नागरिक दर्जा खत्म कर दिया गया था। जिसके बाद से ही म्यांमार सरकार रोहिंग्या मुसलमानों को देश छोड़ने के लिए मजबूर करती आ रही है।
-हालांकि इस पूरे विवाद की जड़ करीब 100 साल पुरानी है, लेकिन 2012 में म्यांमार के राखिन राज्य में हुए सांप्रदायिक दंगो ने इसमें हवा देने का काम किया। उत्तरी राखिन में रोहिंग्या मुसलमानों और बौद्ध धर्म के लोगों के बीच हुए इस दंगे में 50 से ज्यादा मुस्लिम और करीब 30 बौद्ध लोग मारे गए।
विवाद क्या है
-रोहिंग्या मुसलमान और म्यांमार के बहुसंख्यक बौद्ध समुदाय के बीच विवाद 1948 में म्यांमार के आजाद होने के बाद से ही चला आ रहा है। बताया जाता है कि राखिन राज्य में जिसे अराकान के नाम से भी जाता है, 16वीं शताब्दी से ही मुसलमान रहते हैं। ये वो दौर था जब म्यांमार में ब्रिटिश शासन था। 1826 में जब पहला एंग्लो-बर्मा युद्ध खत्म हुआ तो उसके बाद अराकान पर ब्रिटिश राज कायम हो गया। इस दौरान ब्रिटश शासकों ने बांग्लादेश से लेबर को अराकान लाना शुरु किया।
-इस तरह म्यांमार के राखिन में पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश से आने वालों की संख्या लगातार बढ़ती गई। बांग्लादेश से जाकर राखिन में बसे ये वही लोग थे जिन्हें आज रोहिंग्या मुसलमानों के तौर पर जाना जाता है। रोहिंग्या की संख्या बढ़ती देख म्यांमार के जनरल ने विन की सरकार ने 1982 में बर्मा का राष्ट्रीय कानून लागू कर दिया। इस कानून के तहत रोहंग्या मुसलमानों की नागरिकता खत्म कर दी गई।