इस फैसले से हलक में आ जाएगी मुस्लिमों की जान, न फतवा न मौलवी कोई नहीं दे पाएगा राहत

मुस्लिम महिलाओं को राहतनई दिल्ली। जहां एक ओर वेलेंटाइन डे के दिन कई मुस्लिम जोड़े अपना परिवार बसाने के सपने देख रहे होंगे वहीं सुप्रीम कोर्ट ने 14 फरवरी को कहा है कि आगामी 11 मई को वह मुस्लिम महिलाओं को राहत देने वाला सबसे बड़ा फैसला करेगा। दरअसल सर्वोच्च न्यायालय ने मंगलवार को कहा है कि आगामी 11 मई को वह तीन तलाक, निकाह हलाला और मुसलमानों के बीच बहुविवाह की प्रथाओं के तमाम कानूनी पहलुओं पर फैसला करेगा।

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस जेएस खेहर, जस्टिस एनवी रमणा और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने कहा है कि ये ऐसा मामला है, जिसमें मानवाधिकार का मुद्दा भी हो सकता है। साथ ही साथ यह दूसरे कई मामलों पर भी असर डाल सकता है। जिस कारण से यह कॉमन सिविल कोड के तहत बहस करने का मुद्दा नहीं है। इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा है कि वह मुस्लिम लॉ के तहत तलाक पर विचार नहीं करेगा। क्योंकि यह विधायी डोमेन के तहत आता है। कोर्ट मामले में कानूनी पहलू पर फैसला देगा।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि वह एक ऐसा आदेश पारित करेगा जिससे तीन तलाक की वैधता से जुड़ी याचिकाओं का निपटारा 11 मई तक कर दिया जाएगा। अदालत ने पार्टियों के वकीलों से भी कहा है कि वह साथ बैठकर इस मुद्दे को निर्णायक रूप तक पहुँचाएं।

केंद्र सरकार ने भी कोर्ट में दाखिल अपनी याचिका में इसका जमकर विरोध किया था। उसका कहना था कि भारत जैसे सेक्युलर देश में लैंगिक समानता और महिलाओं के मान सम्मान के साथ कतई समझौता नहीं किया जा सकता और संविधान में उसे जो अधिकार दिया गया है उससे वंचित उसे नहीं किया जा सकता।

वहीं केंद्र सरकार की इन दलीलों का ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सर्वोच्च न्यायालय में एक और हलफनामा दाखिल कर जमकर विरोध किया था। बोर्ड ने कहा था कि तीन तलाक को महिलाओं के मौलिक अधिकारों का हनन बताने वाले केंद्र सरकार का रुख बेकार की दलील है।

पीठ ने कहा कि हमारी इस मामले में तथ्यों को देखने में कोई रुचि नहीं है। हम केवल इसके कानूनी पहलुओं पर ही विचार करेंगे। लेकिन कोर्ट ने वकीलों को इससे पीड़ित लोगों का एक छोटा संक्षेप लाने की इजाजत दी।

LIVE TV