मां और बच्चे दोनों के लिए अमृत है स्तनपान

मां के दूधमां के दूध को बच्चों के लिए सर्वश्रेष्ठ पोषण माना जाता है और शिशु के जन्म से छह महीने तक उसका एकमात्र आहार होता है। अध्ययनों में खुलासा हुआ है कि जिन बच्चों को मां का दूध पर्याप्त मात्रा में नहीं मिल पाता, उनमें कान के संक्रमण, सांस में परेशानी और डायरिया की समस्याएं देखने को मिलती हैं। एनएफएचएस की ताजा रपट के अनुसार, मां के दूध से संबंधित फायदों के बावजूद कई भारतीय महिलाएं शिशु के चार माह के होते-होते खुद-ब-खुद स्तनपान कराना छोड़ देती हैं।

रिपोर्ट के अनुसार, स्तनपान कराने वाली महिलाओं को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, क्योंकि वे विशिष्ट स्तनपान कराने पर जोर देती हैं। यह भावनात्मक रूप से अनिवार्य, शारीरिक रूप से थकानेवाला और कई बार असहज होता है।

नई दिल्ली स्थित सर गंगा राम अस्पताल में वरिष्ठ सलाहकार, डॉ. सतीश सालुजा ने कहा, “कई महिलाओं ने बताया कि डिलीवरी (प्रसव) के बाद नई भूमिकाओं और जिम्मेदारियों के बीच संतुलन बनाने में उन्हें काफी मुश्किल हुई है। नवजात शिशु की देखभाल के साथ ही घर के कामों और पेशेवर उत्तरदायित्वों को निभाना आसान नहीं होता। उन्हें इन मुश्किलों का बोझ सहना पड़ा और वे कई बार भावुक हो उठीं।”

डॉ. सालुजा ने कहा, “कई बार ऐसी महिलाओं को शुरुआती कुछ महीनों में सिर्फ स्तनपान से परहेज भी करना पड़ा। ऐसी स्थिति में परिवार और माहौल द्वारा समर्थन प्रदान कर उनकी जिंदगी में बदलाव लाया जा सकता है।”

डॉ. सालुजा ने बताया, “स्तनपान को सिर्फ मां और शिशु के बीच संबंध के रूप में माना जाता है, जोकि गलत धारणा है। दरअसल इसमें पिता की कहीं अधिक बड़ी भूमिका होती है। अनुसंधानों से हमें पता चला है कि पिता द्वारा सहयोग मिलने से मां के स्तनपान जारी रखने के फैसले पर उल्लेखनीय प्रभाव पड़ता है। पिता को निष्क्रिय और तटस्थ प्रेक्षक बनने की जरूरत नहीं है, बल्कि स्तनपान को सफल बनाने की काबिलियत उनमें होती है।”

उन्होंने कहा कि शिशु के दादा-दादी या नाना-नानी भी समान रूप से महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और नई माताओं के लिए समर्थन का एक महत्वपूर्ण स्रोत होते हैं। उनके माता-पिता बनने का अनुभव न सिर्फ स्तनपान शुरू करने, बल्कि उसे जारी रखने के मां के फैसले को प्रभावित कर सकता है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि मौजूदा दौर में आमदनी के लिए अधिक-से-अधिक महिलाए नौकरी कर रही हैं। कार्य और परिवारिक जीवन के बीच संतुलन बिठाना उनके लिए महत्वपूर्ण प्राथमिकता है। लेकिन कभी-कभी उन्हें इन दोनों के बीच में किसी एक को चुनने के लिए मजबूर होना पड़ता है और अपने नवजात को स्तनपान कराना बंद करना पड़ता है।

रिपोर्ट के अनुसार, संगठनों को ऐसे कार्यस्थल परिवेश का निर्माण करने की जरूरत है, जो स्तनपान कराने के महिलाओं निर्णय को समर्थन एवं सम्मान दे। एक नियोक्ता के रूप में कामकाजी महिलाओं के ब्रेस्टफीडिंग (स्तनपान) में सहयोग करने के तीन रास्ते हैं -समय, अंतराल (स्पेस) और प्रोत्साहन।

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