प्रेरक प्रसंग : गुण-अवगुण

जब रीवां की गद्दी पर महाराज जोरावर सिंह जूदेव बैठे तो उन्होंने अपने राज्य में अनेक सुधार किए। यह भी कहा कि हमारा राज्य उसी धर्म का अनुयायी होगा जो सर्वमान्य और निर्दोष होगा। उन्होंने सभी धर्म और संप्रदाय के प्रमुख साधु-संतों, विद्वानों और मठाधीशों की सभा बुलाई।

प्रेरक प्रसंग

सभी प्रतिनिधियों ने अपने-अपने धर्म की विशेषताएं बताईं। काफी प्रयासों के बाद भी कोई धर्म बिना आक्षेप या शंका, आलोचना के सामने नहीं आया जिसे सर्वमान्य और निर्दोष माना जाए। कुछ समय के बाद महाराज ने राज्य भ्रमण का निर्णय किया।

नदी पार करने के लिए दीवान जी से नौकाएं मंगाई गयीं। दीवान जी ने एक-एक नाव का निरीक्षण कर महाराज से कहा कि, ‘इन सारी नाव में से कोई ऐसी नहीं जो दोषरहित हो। कोई नाव छोटी है, कोई बहुत बड़ी, कोई बहुत पुरानी है तो कोई बहुत गंदी। किसी का झुकाव एक तरफ है।’ तभी महाराज बीच में बोल उठे- ‘तो इससे क्या फर्क पड़ता है।

देखना तो यह है यह नाव हमें नदी पार उस किनारे तक पहुंचा सकती है या नहीं?’ दीवान जी बोले, ‘महाराज, आपका कथन सत्य है। कोई ना कोई दोष होने के बाद भी इनमें से हर एक नाव हमें नदी के उस किनारे तक पहुंचाने में सक्षम है। इन्हीं नावों की तरह संसार में विविधता लिए अनेक धर्म हैं। हर एक धर्म में किसी ना किसी को कोई ना कोई दोष अवश्य दिखाई देता है।

फिर भी यह सच है कि ये सारे धर्म दुखी-प्राणियों को इस भवसागर से पार कराने में पूर्णतया समर्थ हैं। देश और काल के कारण इन में बाहरी और ऊपरी भेद अवश्य दिखाई देता है। महाराजा ने दीवान जी की सराहना करते हुए कहा, ‘आप सही कह रहे हैं। सर्वमान्यता किसी भी चीज में खोजना व्यर्थ है। अगर कुछ सारभूत है तो वह है उपयोगिता या उपादेयता।’

LIVE TV