पैकेट वाला दूध छोटे बच्चों और शिशुओं के लिए खतरनाक हो सकता है खतरनाक, जानें कारण
आमतौर पर 6 माह की उम्र तक शिशुओं को स्तनपान कराया जाता है। इसके बाद थोड़ी-थोड़ी मात्रा में बाहर के दूध की आदत डाली जाती है। शहरों में रहने वाले ज्यादातर छोटे बच्चे पैकेटबंद दूध पीते हैं।
मगर क्या आपको पता है कि बच्चों की सेहत के लिए ये पैकेटबंद दूध कितना खतरनाक हो सकता है? दरअसल बाजार में मौजूद ज्यादातर पैकेटबंद दूध शुद्ध नहीं होते हैं।
इसके अलावा पशुओं से ज्यादा मात्रा में दूध निकालने के लिए इंजेक्शन, दवाओं आदि का सहारा लिया जाता है, जिसके कारण दूध में कुछ अप्राकृतिक तत्व आ जाते हैं। आइए आपको बताते हैं कि पैकेटबंद दूध किस तरह शिशुओं के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है।
बाजार में मौजूद 68% दूध मानक क्वालिटी से कम के
हाल में जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत के बाजार में मौजूद 68.7 प्रतिशत से ज्यादा दूध FSSAI के मानक पर खरे नहीं उतरते हैं। वहीं विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग की एक रिपोर्ट के अनुसार 89.2% से ज्यादा दूध या दूध से बने पदार्थों में किसी न किसी स्तर पर मिलावट की जाती है।
दूध की मात्रा बढ़ाकर ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए इसमें यूरिया, वेजिटेबल ऑयल, ग्लूकोज या अमोनियम सल्फेट आदि मिला दिया जाता है जो हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत नुकसानदायक हैं।
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शिशुओं की किडनी के लिए नुकसानदायक
छोटे बच्चों और शिशुओं के अंग शुरुआत में पूर्ण विकसित नहीं होते हैं। ऐसे में अगर दूध में कुछ मिलावट है या अप्राकृतिक तत्व हैं, तो शिशुओं की किडनियां इससे प्रभावित होती हैं।
किडनी हमारे शरीर का महत्वपूर्ण अंग है, जो हमारे शरीर में तरल पदार्थों को फिल्टर करके गंदगी को बाहर निकालता है। मगर पूरी तरह विकसित न हो पाने के कारण मिलावटी दूध शिशुओं की किडनी को डैमेज कर सकता है।
बीमार हो सकते हैं बच्चे
छोटे बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता उतनी नहीं होती है, जितनी वयस्कों की होती है। इसलिए छोटे बच्चे मिलावटी दूध या अन्य मिलावटी पदार्थों से ज्यादा प्रभावित होते हैं।
अगर दूध में बैक्टीरियल कॉन्टैमिनेशन है तो बच्चों को फूड प्वायजनिंग, पेट दर्द, डायरिया, आंतों का इंफेक्शन, टायफाइड, उल्टी, लूज मोशन आदि होने का डर होता है।
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रुक सकता है बच्चों का विकास
मिलावटी और अप्राकृतिक दूध पीने के कारण बच्चों का विकास बाधित हो सकता है। दरअसल दूध का उत्पादन बढ़ाने के लिए पशुओं को ऑक्सिटोसिन का इंजेक्शन लगाया जाता है।
इसके अलावा यूरिया, शैंपू, अमोनियम सल्फेट आदि का बच्चों के मानसिक और शारीरिक विकास पर बुरा प्रभाव पड़ता है। हालांकि शहर में रहने वाले लोगों की मजबूरी यह है कि उन्हें आसानी से शुद्ध दूध नहीं मिलता है, इसलिए उन्हें पैकेटबंद दूध पर ही निर्भर रहना पड़ता है।