राजस्थान के खारची गांव को पादप जीनोम रक्षक पुरस्कार

पादप जीनोम रक्षक जयपुर| खारचिया गेहूं के संरक्षण के लिए राजस्थान के पाली जिले की मारवाड़ जंक्शन तहसील के खारची ग्राम पंचायत को राष्ट्रीय स्तर के पादप जीनोम रक्षक समुदाय पुरस्कार से नवाजा गया है।

राजस्थान के पाली जिले की मारवाड़ जंक्शन तहसील के खारची ग्राम पंचायत को पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण, नई दिल्ली द्वारा बुधवार को नई दिल्ली स्थित नास (एनएएससी) परिसर में आयोजित समारोह में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री द्वारा राष्ट्रीय स्तर के पादप जीनोम रक्षक समुदाय पुरस्कार से सम्मानित किया।

भारत में कृषक समुदाय के पास हर फसल में बहुत विविधता है तथा समय की मांग के अनुसार जरूरत इस बात की है कि उनका संरक्षण व संवर्धन किया जाए।

पाली कृषि विज्ञान केंद्र के अध्यक्ष डॉ. धीरज सिंह ने कहा कि पुराने समय में किसानों को लवणीय भूमि के सुधार के उपाय मालूम नहीं थे फिर भी वहां पर मारवाड़ क्षेत्र में पीढ़ियों से खारचिया गेहूं (लाल गेहूं) बिना किसी तकनीक के पैदा होता आ रहा है।

डॉ. धीरज सिंह ने खारचिया गेहूं के संरक्षण के लिए भारत सरकार का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि आज का पुरस्कार, प्रमाण (प्रशस्ति पत्र) खारची के उपस्थित कृषक समुदाय को जाता है, जिन्होंने अपने परंपरागत कृषि प्रणाली व जीवन जीने की प्रणाली को धैर्य के साथ संजोए रखा।

उन्होंने कहा कि मारवाड़ क्षेत्र के इसी धैर्य का परिणाम है कि आज परंपरागत खारचिया गेहूं के संरक्षण के लिए पादप जिनोम रक्षक समुदाय के राष्ट्रीय पुरस्कार से खारची सरपंच तथा जनप्रतिनिधिमंडल को नवाजा गया है।

इस अवसर पर ग्राम पंचायत खारची के सरपंच सोहन लाल सरगरा ने इस गेहूं की खूबियां बताते हुए कहा कि इसकी रोटी व लापसी खाने में नरम होती है, ठंडी रोटी खाने से भी कोई नुकसान नहीं होता, स्वाद उत्तम व मीठा होता है। स्वादिष्ट तथा ताकतवर होने के कारण प्रसूता मां बहनों को भी इसके लड्डू खिलाए जाते हैं।

सम्मान के तौर पर दस लाख रुपये एवं प्रशस्ति पत्र प्रदान किया गया, जिससे खारचिया गेहूं खारची गांव के नाम से पंजीकृत हो गया है तथा भविष्य में इस गेहूं से होने वाले हर व्यावसायिक पक्ष में खारची गांव की हिस्सेदारी होगी।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री राधा मोहन सिंह ने कहा कि कृषि अनुसंधान केंद्रों तथा कृषि विज्ञान केंद्रों का यह भी एक कार्य है कि ये अपने जिले में कृषकों द्वारा उपयोग में लिए जा रहे परंपरागत फसल पद्धतियों, बीजों, दूर दराज के क्षेत्रों में उपलब्ध परंपरागत कृषि तकनीक ज्ञान का संग्रहण करें एवं कम लागत की तकनीकी ज्ञान को कृषक समुदाय में प्रचारित करें।

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