
वाराणसी : गंगा के किनारे बसे शहर को काशी और बनारस के नाम से भी जानते हैं. अक्सर लोग यहां मोक्ष की तलाश में आते हैं. यहां पर कई घाट हैं लेकिन मणिकर्णिका घाट बहुत ही मशहूर है. वैसे इस घाट पर पूरे साल गम का माहौल होता है. लेकिन साल में एक दिन ऐसा होता है जब यहां जश्न होता है. इस घाट पर नगरवधुएं जलती चिताओं के बीच डांस करती हैं.
हर साल मणिकर्णिका महाश्मशान पर बाबा महाश्मशान नाथ के वार्षिक श्रंगार का आयोजन होता है. नगरवधुएं (वेश्या) इस घाट पर जलती चिताओं के बीच डांस करती हैं. साथ ही बाबा महाश्मशान नाथ से मुक्ति की प्रार्थना करती हैं.
वैसे तो इस जगह पर कोई बड़ा सिंगर नहीं आता लेकिन इस बार घाट पर शास्त्रीय संगीत की मशहूर पद्मश्री से सम्मानित सिंगर सोमा घोष ने सुरों से महफिल को सजाया और इसके साथ ही डांसर ने डांस किया.
सोमा घोष ने कहा, ‘ यह परंपरा बहुत पुरानी है. राजा मानसिंह ने जब महाश्मशान पर मौजूद इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया, तब परंपरानुसार संगीत के आयोजन करने का प्रस्ताव रखा था. उस वक्त कोई भी संगीतकार यहां आने को तैयार नहीं हुआ, तब नगरवधुओं ने यहां नृत्य किया. तब से लेकर आज तक यहां हर साल इस दिन हर कोई पूरी रात गम को भुलाकर संगीत में खो जाता है.
उन्होंने कहा, ‘खुद का टैलेंट दिखाने का इससे अच्छा मौका नहीं मिल सकता है. जिंदगी का असली सच मौत है. लोग यहां दूर-दूर से आते हैं. उनकी ख्वाहिश होती है कि वे शिव को लेकर यहां से जाएंगे, जो यहां विराजते हैं. अपने ही देश के कुछ इलाकों में श्मशान में महिलाएं नहीं आ सकती है. भला जहां शक्ति है, वहां नारी को आप कैसे दूर कर सकते हैं. नगरवधू 300 साल से यहां आती हैं और नगरवधू ही मां सरस्वती की सच्ची पुत्री है तो फिर इस मौका को हाथ से जाने क्यों दूं?