देश की जनता कैसे भूल सकती है इन पांच बजटों को, जिसने बदल दी थी भारत की तस्वीर

  1. उदारीकरण बजट

1991 में पूर्व वित्त मंत्री मनमोहन सिंह द्वारा पेश किया बजट बहुत याद किया जाता है। तब मनमोहन सिंह ने देश में विदेशी कंपनियों को कारोबार करने के लिए खुली छूट दे दी थी। उस वक्त से ही देश में उदारीकरण का दौर शुरू हुआ था। भारतीय कंपनियों को भी देश के बाहर व्यापार करना आसान हुआ था। कस्टम ड्यूटी को 220 फीसदी से घटाकर 150 फीसदी पर लाया गया था। इस बजट के दो दशक बाद भारत की जीडीपी में रफ्तार देखने को मिली थी। 

2. काला बजट
1973-74 में तत्कालीन वित्त मंत्री यशवंतराव चव्हाण द्वारा पेश किए गए बजट को काला बजट की संज्ञा दी जाती है। ऐसा इसलिए क्योंकि उस वक्त 550 करोड़ से ज्यादा का घाटा था। इस बजट में चव्हाण ने 56 करोड़ रुपये में कोयला खदानों, बीमा कंपनियों व इंडियन कॉपर कॉर्पोरेशन का राष्ट्रीयकरण किया था।

3. सपनों का बजट
1997 में पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम द्वारा पेश किए गए बजट को सपनों का बजट भी कहा जाता है। तब वित्त मंत्री ने आयकर और कंपनी कर में कटौती करने की घोषणा की थी। आयकर दरों को 40 फीसदी से 30 फीसदी पर लाया गया था। इसके साथ ही सरचार्ज को भी खत्म कर दिया गया था।

4. मिलेनियम बजट
2000 में यशवंत सिन्हा द्वारा पेश किए गए बजट को मिलेनियम बजट कहा जाता है। इस बजट में भारत की आईटी कंपनियों को काफी रियायत देने की घोषणा की गई थी। 21 वस्तुओं जैसे कि कंप्यूटर और सीडी रोम पर कस्टम ड्यूटी को कम करने का एलान किया गया था।

5. रोलबैक बजट
2002 में यशवंत सिन्हा द्वारा पेश किए गए बजट को रोलबैक बजट भी कहा जाता है। इस बजट में दिए गए कई प्रस्तावों जैसे कि सर्विस टैक्स और रसोई गैस सिलेंडर के दामों में बढ़ोतरी की गई थी। इसको आम जनता और विपक्ष के विरोध के कारण वापस लेना पड़ा था।

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