तिरुपति में हर रोज चढ़ता है करोंड़ो का चढ़ावा, फिर भी कर्ज में डूबे हैं ‘बालाजी’!

तिरुपति बालाजीभारत के सबसे अमीर मंदिरों में शुमार तिरुपति बालाजी के बारे में तो आप सभी जानते होंगे। ये हिन्दुओं के सबसे पूजनीय मंदिरों में से एक है। तिरुपति बालाजी में देश और विदेश से भक्त गण आते है। इस मंदिर को इतना पवित्र माना गया है की यहां पर आने वाला हर भक्त अपनी इच्छा अनुसार पैसे-गहने और कीमती सामान चढ़ावा के रूप में मंदिर परिसर को भेट करता है। जिसको संभालने के लिए बाकायदा एक कमेटी बनाई गई है जो मंदिर के आभूषण के साथ चढ़ावे में जमा पैसों का भी हिसाब किताब रखती है। सरकारी आकड़ो के हिसाब से तो मंदिरों का सालाना चढ़ावा करोड़ो के हिसाब से जमा होता है।

लेकिन इतना सब होने के बाद भी क्या आपको पता है तिरुपति बालाजी का मंदिर कर्ज में डूबा हुआ है। चौकिए मत दरअसल ये कर्ज भगवान विष्णु का है जो उन्होंने अपने विवाह के लिए कुबेर से लिया था। अब आप सोच रहे होंगे की आखिर भगवान के पास कौन सी धन की कमी थी जो उन्हें अपने विवाह के लिए कर्ज लेना पड़ा। तो चलिए आज हम आपको बताते है वो वजह जिसकी वजह से आज भी तिरुपति बालाजी कर्ज में डूबा हुआ है।

कथा के अनुसार – एक बार महर्षि भृगु वैकुंठ पधारे और आते ही शेष शैय्या पर योगनिद्रा में लेटे भगवान विष्णु की छाती पर एक लात मारी। विष्णु निद्रा से उठे और तुरंत भृगु के चरण पकड़ लिए और बोले ऋषिवर पैर में चोट तो नहीं लगी।

बस इतना कहते ही भृगु ने हाथ जोड़ लिए और बोले प्रभु आप ही सबसे सहनशील देवता है। लेकिन माता लक्ष्मी को भृगु का व्यव्हार पसंद नहीं आया और वह विष्णु जी से नाराज हो गई।

माता की नाराजगी की वजह ये थी कि भगवान ने भृगु को दंड क्यों नहीं दिया।

ये नाराजगी इतनी थी कि देवी वैकुंठ छोड़कर ही चली गई और पृथ्वी पर पद्मावती नाम की कन्या के रूप में जन्म ले लिया। तब भगवान विष्णु ने भी अपना रूप बदला और पद्मावती के पास पहुँच गए और विवाह का प्रस्ताव रख दिया।

देवी ने प्रस्ताव स्वीकार कर लिया लेकिन सवाल यह खड़ा हो गया कि विवाह के लिए धन कहा से लाया जाए।

तब भगवान विष्णु को एक तरकीब सूझी उन्होंने शिव और ब्रह्मा को साक्षी मानकर कुबेर से काफी धन कर्ज ले लिया। इस कर्ज से विष्णु के वेंकटेश रूप और देवी के पद्मावती रूप का विवाह संपन्न हुआ।

भगवान विष्णु ने कुबेर से कर्ज लेते वक्त यह वचन दिया था कि कलयुग के अंत तक वे कुबेर का कर्ज चुका देंगे और कर्ज समाप्त  होने पर भी वे सूद चुकाते रहेंगे।

जिसके बाद ये मान्यता मानी जाने लगी की आज भी जो भक्त तिरुपति बालाजी में चढ़ावा चढ़ाता है उसे  कुबेर सूद के रूप में अपने बही खाते में दर्ज करते रहते है।

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