जानें क्यों मकर संक्रांति के दिन बनते हैं तिल के लड्डू….?

मकर संक्रांति का पुण्यकाल 14 जनवरी को दोपहर 1.28 बजे से दूसरे दिन 15 जनवरी को सुबह 11.52 बजे तक रहेगा। इससे दोनों दिन दान-पुण्य और स्नान किया जा सकेगा। इस दिन दान-पुण्य करने से सौ गुना फल की प्राप्ति होती है। इस अवसर पर भगवान सूर्यदेव धनु राशि छोड़ मकर राशि में प्रवेश करते हैं। इस दिन भगवान सूर्य की उत्तरायण गति प्रारंभ होती है। मकर संक्रांति के दिन तिल का दान या तिल से बनी सामग्री ग्रहण करने से कष्टकारी ग्रहों से छुटकारा मिलता है। इस के पीछे न केवल धार्मिक बल्कि वैज्ञानिक कारण भी है।

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तिल से शरीर का तापमान रहता है नियंत्रित, दूर होता है तनाव
रिलिजन डेस्क. हमारे धर्म शास्त्रों के अनुसार मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं। वहीं मकर राशि के स्वामी शनि देव हैं, जो सूर्य देव के पुत्र होते हुए भी सूर्य से शत्रु भाव रखते हैं। अतः शनिदेव के घर में सूर्य की उपस्थिति के दौरान शनि उन्हें कष्ट न दें, इसलिए तिल का दान और सेवन मकर संक्रांति में किया जाता है। मान्यता यह भी है कि माघ मास में जो रोजाना भगवान विष्णु की पूजा तिल से करता है, उसके सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से तिल का सेवन सेहत के लिए लाभकारी माना गया है।

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ये हैं वैज्ञानिक लाभ
अगर वैज्ञानिक आधार की बात करें तो तिल के सेवन से शरीर गर्म रहता है और इसके तेल से शरीर को भरपूर नमी भी मिलती है। दरअसल सर्दियों में शरीर का तापमान गिर जाता है। ऐसे में हमें बाहरी तापमान से अंदरुनी तापमान को बैलेंस करना होता है। तिल और गुड़ गर्म होते हैं, ये खाने से शरीर गर्म रहता है। इसलिए इस त्योहार में ये चीजें खाई और बनाई जाती हैं। तिल में कॉपर, मैग्नीशियम, ट्राइयोफान, आयरन, मैग्नीज, कैल्शियम, फास्फोरस, जिंक, विटामिन बी 1 और रेशे प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। एक चौथाई कप या 36 ग्राम तिल के बीज से 206 कैलोरी ऊर्जा प्राप्त होती है। तिल में एंटीऑक्सीडेंट गुण भी पाए जाते हैं। ितल शरीर में उपस्थित जीवाणुओं और कीटाणुओं का दमन करता है।

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