जानिए सैलरी क्लास के लिए बढ़ना चाहिए स्टैण्डर्ड डिडक्शन, ये लोग ज्यादा चुकाते हैं टैक्स , हुआ खुलासा…

इस बार के बजट में वेतनभोगी क्लास पर वित्त मंत्री को अपनी नजरें इनायत करनी होगी। इनके लिए स्टैण्डर्ड डिडक्शन को बढ़ाना होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि वेतनभोगी कई तरह के सलाहकारों से 20 फीसदी ज्यादा टैक्स चुकाते हैं। अभी करदाताओं को जो स्टैण्डर्ड डिडक्शन मिलता है वो साल भर का 50 हजार रुपये है। 2018 में जब इसको शुरू किया गया था, तब यह राशि 40 हजार रुपये तय की गई थी। पहले यह 2004-05 तक मिला करता था, लेकिन बाद में इसे हटाकर 19200 रुपये ट्रांसपोर्ट एलाउंस और स्वास्थ्य बीमा के लिए 15 हजार रुपये कर दिया था। लेकिन इस कदम से लोगों को केवल हर साल टैक्स छूट में 5800 रुपये का फायदा होता था।
इसके अलावा सरकार ने दो दशक पहले बच्चों की पढ़ाई पर हर माह 100 रुपये और हॉस्टल अलाउंस 300 रुपये तय किया था, जो आज की बढ़ती महंगाई में काफी कम है।

जानिए सैलरी क्लास के लिए बढ़ना चाहिए स्टैण्डर्ड डिडक्शन, ये लोग ज्यादा चुकाते हैं टैक्स , हुआ खुलासा...

बतादें की देश भर में कार्यरत डॉक्टर, इंजीनियर और वकील अपनी कुल कमाई का केवल आधा टैक्स ही देते हैं। अगर इनकी साल भर की कमाई 30 लाख रुपये है, तो इनको नियम के अनुसार केवल 15 लाख रुपये पर टैक्स देना होगा। वहीं 30 लाख रुपये की सालाना कमाई वाले वेतनभोगी को पूरा टैक्स देना होता है। हालांकि यह प्रिजंटिव टैक्स का लाभ केवल 50 लाख रुपये तक की सालाना कमाई पर मिलता है। अगर किसी की कमाई इससे ज्यादा है तो फिर उसे इसका लाभ नहीं मिलेगा।
जहां छोटे करदाताओं को सरकार की प्रिजंप्टिव टैक्स स्कीम का हमेशा से लाभ मिला है। हालांकि टेबल के माध्यम से हम समझ सकते हैं कि सैलरी क्लास को जहां एक साल में 6.73 लाख रुपये टैक्स में देने पड़ते हैं, वहीं सलाहकार को केवल साल भर में 2.18 लाख रुपये टैक्स में देना होता है। इस हिसाब से सैलरी क्लास को हर साल 4.55 लाख रुपये ज्यादा टैक्स देना होता है।
जहां इस महीने के आखिर तक आयकर रिटर्न दाखिल करने की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। सभी आयकरदाता टैक्स छूट में ज्यादा से ज्यादा लाभ पाने की तैयारी कर रहे होंगे। अगर आप हिंदू अविभाजित परिवार (एचयूएफ) के दायरे में आते हैं, तो इसमें पंजीकरण कर आयकर कानून की धारा 2(31) के तहत विशेष छूट का लाभ ले सकते हैं। आयकर विभाग किसी एचयूएफ को अलग इकाई के तौर पर गिनता है, जिससे उसके टैक्स छूट का दायरा भी बढ़कर करीब दोगुना हो जाता है।
लेकिन हिंदू अविभाजित परिवार बनाने के लिए परिवार के मुखिया (कर्ता) के नाम खाता खुलवाना होता है, लेकिन उसके नाम के बाद एचयूएफ शब्द जुड़ा होता है। इसके बाद एचयूएफ पैन कार्ड के लिए आवेदन करें। यह पैन कार्ड कर्ता के नाम पर होता है, लेकिन अंत में एचयूएफ शब्द जुड़ा होता है।
पैन कार्ड बनवाने के लिए आवेदन फॉर्म में जन्मतिथि की जगह अपनी शादी की तिथि डालें।  आयकर कानून के तहत कर्ता की भूमिका परिवार के मैनेजर की होती है और एचयूएफ के सारे सदस्य (पत्नी, बच्चे, पोते) इसके पार्टनर की तरह होते हैं।  जहां एचयूएफ का खाता पंजीकृत होने के बाद आप उसके नाम पर अलग निवेश शुरू कर सकते हैं। इसमें प्रॉपर्टी के लिए मकान खरीदने के साथ शेयर बाजार या म्यूचुअल फंड में पैसे लगा सकते हैं। आयकर की धारा 112ए के तहत म्यूचुअल फंड या सूचीबद्ध शेयरों में लंबी अवधि का निवेश कर पूंजीगत लाभ ले सकते हैं। एक एचयूएफ अपने पैसों से या इसमें शामिल अन्य सदस्यों से पैसे लेकर खुद का बिजनेस भी शुरू कर सकता है, जिस पर साल दर होने वाली आय में टैक्स छूट का नियमानुसार लाभ ले सकेंगे।
दरअसल एचयूएफ बनाने के बाद आप अपनी आमदनी पर दो तरह से लाभ ले सकते हैं। व्यक्तिगत रूप से भी और एचयूएफ सदस्य के नाते भी। जिन लोगों के पास पैतृक संपत्ति है या जिन्हें परिसंपत्तियां वसीयत में मिली हैं, वे एचयूएफ का सबसे ज्यादा फायदा उठा सकते हैं।

वसीयत से मिली परिसंपत्तियों को एचयूएफ में शामिल करने से इस पर टैक्स बचाना आसान हो जाएगा। अगर कोई पुश्तैनी जायदाद बेची जाती है तो उससे मिली रकम को भी एचयूएफ में ट्रांसफर कर टैक्स छूट का लाभ ले सकते हैं। आप नौकरीपेशा हैं तो पैतृक संपत्ति जैसे प्रॉपर्टी आदि से होने वाली आमदनी पर टैक्स बचत के लिए एचयूएफ का सहारा ले सकते हैं।

 

 

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