जानिए आखिर नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी के चुनावी प्रचार को क्यों नहीं किया गया बैन…

नई दिल्ली : साल 2019 में लोकसभा चुनाव को लेकर चुनाव आयोग अब  सख्त  नज़र आ रही हैं। देखा जाये तो मायावती के बेतुके बयान को लेकर चुनाव आयोग ने उनकी रैली पर प्रतिबंद लगा दिया हैं और साथ ही योगी की भी रैली को अनुमति नही दी  गई हैं। ऐसे में अब बात राहुल गाँधी और पीएम मोदी की उनकी रैली में या भाषण में चुनाव आयोग ने आखिर क्यों प्रतिबंदित नही किया हैं।

मोदी

 

आज़म खान –

बता दें की इस बारे में आज़म खान का कहना हैं की , उसकी असलियत समझने में आपको 17 साल लगे. मैं 17 दिन में पहचान गया कि इनके ** का ****** खाकी रंग का है।

 

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योगी आदित्यनाथ –

अगर कांग्रेस-बीएसपी-एसपी को ‘अली’ पर विश्वास है तो हमें भी बजरंगबली पर विश्वास है. गठबंधन वाले मान चुके हैं कि बजरंगबली के अनुयायी उन्हें बदर्शत नहीं करेंगे, इसलिए वह अली-अली चिल्लाकर हरा वायरस फिर से भेजना चाहते हैं। लेकिन हरे वायरस की चपेट में पश्चिम को लाने की आवश्यकता नहीं है। जहां पूरब से हम पहले ही हरे वायरस का सफाया कर चुके हैं।

मायावती –

मुस्लिम समुदाय के लोग अपना वोट बंटने ना दें और सिर्फ महागठबंधन के लिए वोट दें।

 मेनका गांधी –

मैं जीत रही हूं. लोगों की मदद और प्यार से मैं जीत रही हूं. लेकिन अगर मेरी जीत मुसलमानों के बिना होगी, तो मुझे बहुत अच्छा नहीं लगेगा. क्योंकि इतना मैं बता देती हूं कि दिल खट्टा हो जाता है. फिर जब मुसलमान आता है काम के लिए तो मैं सोचती हूं कि रहने दो, क्या फ़र्क पड़ता है.

राहुल गांधी –

अब तो सुप्रीम कोर्ट ने भी कह दिया है कि चौकीदार चोर हैं।

 नरेंद्र मोदी –

मैं फर्स्ट टाइम वोटर्स से कहना चाहता हूं, क्या आपका पहला वोट पाकिस्तान के बालाकोट में एयर स्ट्राइक करने वाले वीर जवानों के नाम समर्पित हो सकता है क्या? आपका पहला वोट पुलवामा में जो वीर शहीद हुए उन वीर शहीदों के नाम आपका वोट समर्पित हो सकता है क्या?

तो दोस्तों हमारी लिस्ट में लास्ट के 2 नेता अगर बाकी (लिस्ट के ऊपर के 4 नेताओं) के बराबर का भी कद रखते तो भी इनके बयान इतने बुरे तो हैं हीं कि इनके साथ भी वही या वैसा ही कुछ किया जाना चाहिए था जो चुनाव आयोग ने बाकियों के साथ किया हैं।

वहीं इस एक कंडीशन के हिसाब से क्या दोनों पर ज़्यादा बड़ा फैसला नहीं लिया जाना चाहिए था? क्यूंकि इनका कद भी उतना ही बड़ा हैं। जहां इनकी ज़िम्मेदारियां भी इतनी ही बड़ी हैं। लेकिन शायद चुनाव आयोग ने इनकी ज़िम्मेदारियों को देखा नहीं सिर्फ इनकी ताकत देखी हैं।जहां हमेशा देखा गया हैं की हुनर क्यों न देखा’ की तर्ज़ पर यूं उनपर बड़ा तो छोड़ो समान या कम इंटेसिटी का फैसला भी नहीं लिया गया हैं।

 

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