ग्रामीण क्षेत्रों में शहर से अधिक महंगाई : क्रिसिल

ग्रामीण क्षेत्रों में महंगाईमुंबई| रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने सोमवार को कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में महंगाई शहर से भी अधिक है|एजेंसी के अनुसार पिछले एक वर्ष में शहरी मुद्रास्फीति जहां 9 प्रतिशत से कम होकर 5.3 प्रतिशत हो गई, वहीं ग्रामीण मुद्रास्फीति 10.1 प्रतिशत से घटकर 6.2 प्रतिशत रही। क्रिसिल ने अपने शोध में कहा है कि यह अंतर हाल के 100 आधार अंकों के बराबर ही बना रहा। इसका कारण ग्रामीण इलाकों में ईंधन और आवश्यक चीजों के मूल्य में वृद्धि है।

वर्ष 2015-16 में ग्रामीण इलाकों में मूल मुद्रास्फीति 6.7 प्रतिशत थी जबकि शहरी मुद्रास्फीति 4.8 प्रतिशत रही। स्वास्थ्य, शिक्षा, घरेलू सामान और सेवा एवं मनोरंजन जैसी सभी उप श्रेणियों में पिछले वित्तीय वर्ष में ग्रामीण इलाकों में महंगाई देखी गई।

खबरों के मुताबिक, ईंधन ग्रामीण इलाकों में 6.8 प्रतिशत महंगा हुआ जबकि शहरी इलाकों में यह मात्र 2.7 प्रतिशत महंगा रहा। महंगाई का यह अंतर ढाई गुणा से भी अधिक है। खाना बनाने के काम आने वाली लकड़ी, कोयला और उपलों की बढ़ी कीमत की वजह से महंगाई बढ़ी।

जलावन के लिए लकड़ी और उपलों का इस्तेमाल ग्रामीण इलाकों में 84 प्रतिशत जबकि शहरी इलाकों में 23 प्रतिशत आबादी करती है। इनकी मुद्रास्फीति 7.4 प्रतिशत रही। गोबर वाले उपले का इस्तेमाल 41 प्रतिशत ग्रामीण आबादी करती है जबकि शहरी आबादी मात्र 7 प्रतिशत करती है। यह पिछले वित्तीय वर्ष में 10.8 प्रतिशत महंगे हुए।

रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले पांच वर्षो के आंकड़ों से पता चलता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले 69 प्रतिशत भारतीयों को अपने स्तर के शहरी व्यक्ति की तुलना में अधिक महंगाई झेलनी पड़ी।

शोध रिपोर्ट से पता चलता है कि पेट्रोल के मूल्य में पिछले वित्तीय वर्ष में 7.6 प्रतिशत की कमी आई जबकि डीजल के मूल्य 11.7 प्रतिशत कम हुए। उसका लाभ शहरी इलाकों को जितना मिला उतना ग्रामीण इलाकों को नहीं मिला।

शहर के 37 प्रतिशत घरों में पेट्रोल का इस्तेमाल होता है जबकि दो प्रतिशत लोग अपने वाहनों में डीजल का इस्तेमाल करते हैं जबकि ग्रामीण घरों में आधे से भी कम यानी 17 प्रतिशत लोग पेट्रोल और 0.8 प्रतिशत डीजल का इस्तेमाल करते हैं। यह वर्ष 2012 के आंकड़े हैं जो अभी उपलब्ध हैं।

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