गंगा-यमुना को इंसानी दर्जे पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक

गंगानई दिल्ली। गंगा, यमुना नदियों को फिलहाल ‘जीवित व्यक्ति’ का दर्जा नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को इन्हें ‘इंसानी’ दर्जा देने के नैनीताल हाई कोर्ट के आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी। साथ ही उत्तराखंड सरकार की याचिका पर नोटिस जारी किया। उत्तराखंड सरकार ने गंगा, यमुना को इंसानी दर्जा और कानूनी हक देने के हाई कोर्ट के गत 20 मार्च के आदेश को रद करने की मांग की है। राज्य सरकार ने व्यावहारिक दिक्कतें गिनाते हुए अदालत से आदेश पर एकतरफा अंतरिम रोक लगाने की भी मांग की थी।

शुक्रवार को वरिष्ठ वकील गोपाल सुब्रमण्यम व फारुख रशीद ने दलील दी कि हाई कोर्ट ने क्षेत्रधिकार से बाहर जाकर आदेश पारित किया है। हाईकोर्ट से ऐसी कोई मांग नहीं की गई थी, बल्कि सिर्फ अवैध निर्माण हटवाने की मांग थी। सुप्रीम कोर्ट ने दलीलें सुनने के बाद हाईकोर्ट के आदेश पर अंतरिम रोक लगाते हुए जवाब दाखिल करने के लिए नोटिस जारी किया।

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प्रदेश सरकार ने अपनी याचिका में कहा है कि इसमें तनिक संदेह नहीं है कि भारत में गंगा, यमुना और उसकी सहयोगी नदियों का सामाजिक प्रभाव और महत्व है। ये नदियां लोगों और प्रकृति को जीवन और सेहत देती हैं, लेकिन सिर्फ समाज के विश्वास और आस्था को बनाए रखने के लिए गंगा, यमुना को जीवित कानूनी व्यक्ति नहीं घोषित किया जा सकता। हाईकोर्ट ने आदेश पारित कर भूल की है। आदेश के संभावित परिणामों और दिक्कतों का जिक्र करते हुए कहा है कि गंगा, यमुना अंतरराज्यीय नदियां है। संविधान की सातवीं अनुसूची के आइटम 56 में अनुच्छेद 246 के मुताबिक अंतरराज्यीय नदियों के प्रबंधन पर नियम बनाने का अधिकार सिर्फ केंद्र को है।

ऐसे में उत्तराखंड राज्य गंगा, यमुना को जीवित व्यक्ति का दर्जा कैसे दे सकता है? किसी अन्य राज्य में इन नदियों के बारे में अगर कानूनी मुद्दा उठता है तो क्या उत्तराखंड का मुख्य सचिव दूसरे राज्य या केंद्र को निर्देश जारी कर सकता है? नदियों को जीवित व्यक्ति का दर्जा देने से अगर उन नदियों में बाढ़ आदि आती है और किसी का नुकसान होता है तो वह व्यक्ति मुख्य सचिव के खिलाफ नुकसान की भरपाई का मुकदमा दाखिल कर सकता है। क्या राज्य सरकार को ऐसा आर्थिक बोझ वहन करना चाहिए?

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मालूम हो, उत्तराखंड हाई कोर्ट ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए गंगा और यमुना तथा उसकी सहयोगी नदियों को संरक्षित करने के लिए जीवित व्यक्ति का दर्जा दिया था। इन नदियों को इंसानों के समान सभी कानूनी अधिकार दिए थे। हाई कोर्ट ने नमामि गंगे के निदेशक, उत्तराखंड के मुख्य सचिव व उत्तराखंड के एडवोकेट जनरल को इन नदियों का संरक्षक नियुक्त करते हुए उन्हें इनके संरक्षण की जिम्मेदारी दी थी।

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सौजन्य- यु ट्यूब

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