सामने आई अन्नदाता की दर्दनाक सच्चाई, सरकार और बैंकों के दावे औंधे मुंह गिरे
नई दिल्ली। कर्ज तले दबे किसानों की आत्महत्या का मामला एक बार फिर गरमा सकता है। हमेशा राजनीतिक मुद्दा रहे किसान पर चढ़े कर्ज को लेकर सरकारें भी लोकलुभावन वादे करती हैं। इस बारे में एक रिपोर्ट से चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। एनसीआरबी के सामने आए डेटा से यह खुलासा हुआ है। इस रिपोर्ट के बाद सरकार और बैंको के हाथपांव फूलना तय है।
एनसीआरबी के डेटा के मुताबिक, जिन किसानों ने कर्ज न चुका पाने के कारण खुदकुशी की उनमें से 80 फीसद किसानों ने बैंकों से कर्ज लिया था न की महाजनों से। पहली बार एनसीआरबी ने डेटा का इस तरह से विभाजन किया है।
सामने आए आंकड़े 2015 के हैं। 2015 में 3,000 किसानों ने आत्महत्या की थी उनमें से 2,474 किसान बैंकों या किसी माइक्रो फाइनैन्स कंपनी के कर्ज तले दबे थे।
वहीं डेटा के मुताबिक कर्ज के कारण किसानों की आत्महत्या 2015 में लगभग तीन गुणा बढ़ी थी। 2014 में जहां 1,163 किसानों ने आत्महत्या की थी वहीं 2015 में 3,097 किसानों ने आत्महत्या की।
वहीं, फसल के बर्बाद होने की वजह से 2014 में जहां 969 किसानों ने आत्महत्या की थी वहीं 2015 में यह आंकडा 1,562 पर पहुंच गया। राज्यों के हिसाब से देखें तो महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा किसानों ने आत्महत्या की है।
महाराष्ट्र में 1,293 किसानों ने आत्महत्या की, वहीं कर्नाटक में 946 और तेलांगना में 632 किसानों ने आत्महत्या की। इनमें से ज्यादातर किसान बैंकों के कर्ज से उबर ही नहीं पाए। वहीं तेलांगना में 131 और कर्नाटक में 113 किसानों को सूदखोरों ने परेशान कर रखा था।
इस बारे में जानकारों के मुताबिक, सूदखोरों से कर्ज लेने में किसानों को आसानी होती। बैंक लोन कम फ्लैक्सिबल होते हैं और माइक्रो फानैन्स कंपनियों का हाल इससे बुरा है, वे लोन वसूलने की कोशिश में गुडों द्वारा कर्जदारों को धमकाते हैं।