कभी तवायफों के कोठे से लिया चंदा तो कभी घुंघरू बांद मंच पर उतरे थे सर सैयद

अपनी तालीम के लिए पूरी दुनिया में मशहूर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी ने आज अपने 100 साल पूरे कर लिये हैं। मीडिया रिपोर्टस के अनुसार यूनिवर्सिटी को बनाने वाले सर सैयद में एक अलग जुनून सा था। इसी जुनून की वजह से उन्होंने तवायफों के कोठे से चंदा लिया था। इतना ही नहीं वह खुद भी लैला-मजनूं के नाटक में लैला बन गये थे।

आपको बता दें कि पीएम मोदी आज वर्चुअल तरीके से यूनिवर्सिटी के 100 साल पूरे होने पर कार्यक्रम में शिरकत करेंगे। पीएम मोदी लाल बहादुर शास्त्री के बाद दूसरे ऐसे पीएम होगें जो एएमयू में प्रोग्राम में तहत बात करेंगे। हालांकि एएमयू का एक बड़ा तबका वह है जो पीएम के कार्यक्रम को लेकर खफा है।

मीडिया रिपोर्टस में एएमयू के उर्दू डिपार्टमेंट के हेड प्रो. राहत अबरार के हवाले से बताया गया कि 1869-70 में सर सैयद बनारस में सिविल जज के तौर पर नियुक्त थे। उनका लंदन में आना-जाना लगा रहता था। उन्होंने ऑक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी को देखा हुआ था। इसी को देखकर उन्हें एक ऐसी यूनिवर्सिटी बनाने का ख्याल आया जो ऑक्सफोर्ड ऑफ द ईस्ट कहलाए। इसको लेकर उन्होंने 1873 में 9 फरवरी को एक कमेटी बनाई। फिर 8 फरवरी 1877 को मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल कालेज की शुरुआत की।

हिस्ट्री डिपार्टमेंट के पूर्व चेयरमैन व कोर्डिनेटर प्रो. नदीम रिजवी की ओर से मीडिया को बताया सर सैयद ने यूनिवर्सिटी को बनाने के लिए खूब संघर्ष किया। उन्होंने लोगों के पास जा-जाकर चंदा लिया और नाटक में भी काम किया। इतना ही नहीं चंदे के लिए उन्होंने अलीगढ़ में एक नुमाइस में कॉलेज के बच्चों ने लैला-मजनूं नाटकर रखवाया। इसमें लड़कियों का रोल भी लड़कों को करना था। हालांकि ऐन वक्त पर लड़कों की तबियत खराब हो गयी जिसके बाद वह खुद ही घुंघरू बांधकर स्टेज पर आ गये।

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