कनेक्टिविटी बेहतर होने के कारण बढ़े 5 गुना नेशनल हाइवे

भारत ने आजादी के बाद राष्ट्रीय राजमार्ग निर्माण क्षेत्र में पांच गुना की जबर्दस्त छलांग लगाई है। 1951 में देश में बीस हजार किलोमीटर से कम लंबे राजमार्ग थे। मार्च 2015 तक यह आंकड़ा एक लाख किलोमीटर पहुंच गया है। पिछले दो सालों में राजमार्ग क्षेत्र में तेजी आई है। लेकिन जिस रफ्तार से वाहनों की संख्या बढ़ रही है, उसके मुताबिक राजमार्गो का निर्माण नहीं हो पा रहा है।

कनेक्टिविटी बेहतर होने के कारण बढ़े 5 गुना नेशनल हाइवे

केंद्र सरकार के परिवहन अनुसंधान विभाग (टीआरडब्ल्यू) ने सितंबर माह में ‘भारत में सड़कों के बुनियादी आंकड़े’ संबंधी रिपोर्ट पेश की है। इसमें 1951 से मार्च 2015 तक देश में राष्ट्रीय राजमार्गो सहित विभिन्न योजनओं के तहत बनाई गईं सड़कों के बारे में विस्तार से बताया गया है। रिपोर्ट में वाहनों की बढ़ती संख्या का जिक्र भी किया गया है।

1951 में देश में मात्र 19,800 किलोमीटर लंबे राष्ट्रीय राजमार्ग थे। जबकि मार्च 2015 तक यह आंकड़ा एक लाख किलोमीटर पहुंच गया। रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले दो सालों से बजटीय सहायता बढ़ने व सड़क परिायोजनओं की मंजूरी में तेजी आने से राजमार्ग निर्माण में तेजी आई है।

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कनेक्टिविटी हुई है बेहतर…

दो लेन, चार लेन, छह लेन, आठ लेन राष्ट्रीय राजमार्गो से राज्यों की राजधानियों व बड़े शहरों की कनेक्टिविटी बेहतर होने से आवागमन आसान हो गया है। रेल के अलावा लोगों के पास सड़क परिवहन का बेहतर विकल्प मौजूद है। रिपोर्ट में इस बात की आलोचना की गई है कि जिस रफ्तार से पिछले 64 सालों से वाहनों की संख्या बढ़ रही है उस तेजी से राजमार्गो का निर्माण नहीं हो पा रहा है। इस दौरान वाहनों की संख्या में प्रति वर्ष 10 फीसदी का इजाफा हुआ। जबकि राष्ट्रीय राजमार्ग अधिकतम 5.5 प्रतिशत तेजी से बन सके। कमोबेश पीडब्ल्यूडी की अन्य सड़कें व राज्य राजमार्ग भी छह दशक में अधिकतम चार फीसदी की रफ्तार से बने हैं। विदित हो कि देश में कुल सड़क परिवहन का 40 फीसदी यातायात राष्ट्रीय राजमार्गो पर चलता है।

सड़क परिवहन क्षेत्र के विशेषज्ञों का कहना है कि मारुति जैसी बजट कार के आने, नेक्सट जनरेशन बाइक और वाहन आयात नीति में बदलाव के चलते अस्सी के दशक में देश में प्रति वर्ष वाहनों की संख्या 14.8 फीसदी की दर से बढ़ी है। यह आंकड़ा 10-11 फीसदी के बीच बना हुआ है। इस कारण मार्च 2016 में देश में निजी-व्यवसायिक वाहनों की संख्या 24 करोड़ पहुंच गई है।

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भारत में 1978 में पहली बार पश्चिम बंगाल में बेलघारिया एक्सप्रेस-वे बनाने का सपन देखा गया। 1985 में देश की पहली अहमदाबाद-वडोदरा एक्सप्रेस परियोजना शुरू हुई। उस समय चीन में एक्सप्रेस-वे की कल्पना तक नहीं की गई थी। हैरत की बात है कि देश में केंद्र व राज्यों के एक्सप्रेस-वे को मिलाकर कुल लंबाई 500 किलोमीटर है। जबकि चीन में 10,000 किलोमीटर लंबे ग्रीन फील्ड एक्सप्रेस-वे बनाए जा चुके हैं। यह दीगर बात है कि केंद्र सरकार ने 2010 में प्रति वर्ष 1000 किलोमीटर नए एक्सप्रेस-वे बनाने की कल्पना की थी। जिसे आज तक साकार नहीं किया जा सका है।

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