जलीकट्टू पर जीत ने हिन्दुओं को दी हिम्मत, अब कर ली ‘कंबाला’ पर सरकार झुकाने की तैयारी

कंबाला खेलमंगलुरू। तमिलनाडु में सांड़ को क़ाबू करने का खेल जल्लीकट्टू पर जीत के बाद अब हिन्दू समुदाय ने कंबाला खेल पर से प्रतिबंध हटाने की मांग की है। कंबाला तटीय क्षेत्र में सालाना आयोजित होने वाला पारंपरिक भैंसा दौड़ है। कंबाला खेल का 800 साल का इतिहास है और यह तुलुनाडु की परंपरा है।

कंबाला खेल पर लगा है बैन

सरकार पर दबाव बढ़ाते हुए छात्रों, कलाकारों और नेताओं ने शुक्रवार को यहां एक विशाल प्रदर्शन करते हुए ‘कंबाला’ पर से प्रतिबंध हटाने की मांग की। सभी कॉलेजों के छात्र संगठनों, यक्षगान कलाकारों, नेता और तुलुनाद रक्षणा वेदिके के सदस्यों ने यहां हंपनकट्टा में प्रदर्शन किया।

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अभिनेता देवदास कपीकड, नवीन डी पाडिल, भोजराज वामनजूर, निर्माता-निर्देशक विजय कुमार कोडेलबेल, भाजपा सदस्य नलिन कुमार कतिल और कांग्रेस विधायक मोहीउद्दीन बावा सहित तुलु फिल्म जगत की मशहूर हस्तियों ने कंबाला के आयोजन को सुनिश्चित करने के लिए सरकार से फौरन कार्रवाई की मांग की है। इसे लेकर विभिन्न कॉलेजों के छात्रों ने मानव शृंखला बनाई।

गौरतलब है कि तुलु एक द्रविड़ भाषा है, जो एक छोटे से क्षेत्र में, मुख्य तौर पर तटीय कर्नाटक और केरल के कासरगोड जिले में बोली जाती है, जिसे सामूहिक रूप से तुलु नाडू के नाम से जाना जाता है।

भाजपा सदस्य नलिन कुमार कतिल ने आरोप लगाया कि ‘पेटा’ कंबाला को गलत रूप में पेश करते हुए दावा कर रही है कि भैंसों से निर्दयता बरती गई है। उन्होंने कहा कि कंबाला पर से प्रतिबंध हटाए जाने तक प्रदर्शन जारी रहेगा।

कतिल ने गुरुवार को धमकी दी थी कि यदि राज्य सरकार ने कंबाला के लिए अध्यादेश जारी नहीं किया तो वह आमरण अनशन करेंगे।

नवंबर 2016 में कर्नाटक हाई कोर्ट ने कंबाला पर प्रतिबंध लगाने के लिए एक अंतरिम आदेश जारी किया था। इस मामले में अगली सुनवाई 30 जनवरी को है।

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