देखें क्या हुआ जब एक चुड़ैल ने बचा ली गाँव वालों की जिंदगी…

धारधार कुल्हाड़ियां लिए भीड़ ने जब जूरा कारूहिंबी के घर को घेर कर अंदर शरण लिए लोगों को बाहर निकालने की मांग की तो उस वक्त वो बिलकुल निहत्थी थीं। उनके पास अगर कुछ था तो जादुई शक्तियों की उनकी साख थी।

एक चुड़ैल ने बचा ली गाँव वालों की जिंदगी

यही साख और इससे हथियारबंद लोगों के मन में पैदा हुआ वो डर ही था जिसने उन सौ से अधिक लोगों की जान बचा दी जो अपनी जान बचाने के लिए उनके घर के भीतर छिपे थे।

ये रवांडा में हुए जनसंहार के दिनों की बात है। 1994 में शुरू हुए इस नरसंहार में रवांडा के तुत्सी समुदाय के करीब आठ लाख लोग मारे गए थे।

मारे गए इन लोगों में हमलावर हूतू समुदाय के उदारवादी लोग भी शामिल थे। इन में कारूहिंबी की पहली बेटी भी थीं। इस नरसंहार के दो दशक बाद अपने दो छोटे कमरों के घर में द इस्ट अफ्रीकन से बात करते हुए उन्होंने कहा था।

“उस नरसंहार के दौरान मैंने इंसान के दिल का कालापन देखा था।” इसी घर में उन्होंने उन लोगों को छुपाया था और उनकी जान बचायी थी।

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बीते सोमवार को रवांडा की राजधानी किगाली से करीब एक घंटे की दूरी पर पूर्व में स्थित मासूमो गांव में जूरा कारूहिंबी की मौत हो गई। किसी को नहीं पता है कि वो कितने साल की थीं। अधिकारिक दस्तावेजों में उनकी उम्र 93 साल है जबकि वो अपने आप को सौ बरस से ज्यादा का बताती थीं।

जो भी हो, लेकिन जब हूतू मिलिशिया ने उनके गांव पर हमला किया था तब वो बहुत युवा नहीं थीं।

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