इशरत जहां केस में नया मोड़, मोदी सरकार ने छिपाया एक अफसर का राज
दिल्ली। इशरत जहां केस में नया मोड़ आया है। इस मामले से जुड़ी फाइलों की जांच कर रहे वरिष्ठ आईएएस अधिकारी बीके प्रसाद के सेवा विस्तार पर गृह मंत्रालय ने जवाब देने से इनकार कर दिया है। सूचना का अधिकार कानून के जरिए गृह मंत्रालय से यह सवाल पूछा गया था।
बीके प्रसाद तमिलनाडु कैडर के 1983 बैच के अधिकारी हैं। उन्हें दो महीने का सेवा विस्तार दिया गया है। वह 31 मई को सेवानिवृत्त होने वाले थे, पर अब जुलाई तक सेवा देते रहेंगे। इस बारे में गृह मंत्रालय का कहना है कि कैबिनेट कमेटी ने प्रसाद का सेवा विस्तार किया है। पारदर्शिता कानून के सेक्शन आठ (1) के मुताबिक इसकी वजह बताना जरूरी नहीं है। आरटीआई के तहत यह सवाल न्यूज एजेंसी पीटीआई ने पूछा था।
एनबीटी की खबर के मुताबिक प्रसाद की अगुवाई वाली एक सदस्यीय समिति के तथ्यों पर गृह मंत्रालय के आगे के कदम पर फैसला करने में मदद के लिए यह सेवा विस्तार दिया गया है। इस समिति को इस महीने के आखिर तक अपनी रिपोर्ट सौंपनी है। बताया जा रहा है कि समिति अब तक लापता दस्तावेजों तक नहीं पहुंच पाई है। इस साल मार्च में संसद में हंगामे के बाद गृह मंत्रालय ने प्रसाद से इस पूरे मामले की जांच के लिए कहा था।
गृह मंत्रालय से इस मामले से जुड़े जो दस्तावेज गायब हुए हैं, उनमें गुजरात हाईकोर्ट में 2009 में तत्कालीन अटॉर्नी जनरल की ओर से पेश हलफनामे की प्रति तथा दूसरे हलफनामे का मसौदा है, जिनमें तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री पी. चिदंबरम की ओर से बदलाव किए गए थे। पिछले दिनों उस वक्त बड़ा विवाद खड़ा हुआ, जब यह बात सामने आई कि चिदंबरम ने उस हलफनामे में बदलाव करवाया था, जिसमें इशरत जहां और उसके साथियों को लश्कर आतंकी बताया गया था।
इशरत जहां केस
गुजरात में 2004 में 19 साल की इशरत और तीन अन्य लोग को कथित फर्जी मुठभेड़ में मारे गए थे। गुजरात पुलिस ने उस वक्त कहा था कि मारे गए लोग लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी थे और वे गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या के लिए राज्य में दाखिल हुए थे। इस मामले में बीते दिनों सुप्रीम कोर्ट ने भी माना था कि इशरत जहां और उसके साथी आतंकवादी थे।