
उत्तर प्रदेश में बच्चे के साथ ओरल सेक्स के एक मामले की सुनवाई करते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इस अपराध को ‘गंभीर यौन हमला’ नहीं माना है। कोर्ट ने इस प्रकार के अपराध को पोक्सो एक्ट की धारा 4 के तहत दंडनीय माना है। इलाहाबाद हाई कोर्ट का कहना है कि यह कृत्य एग्रेटेड पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट या गंभीर यौन हमला नहीं है। लिहाजा ऐसे मामले में पोक्सो एक्ट की धारा 6 और 10 के तहत सजा नहीं सुनाई जा सकती।

बता दें कि हाईकोर्ट ने ये फैसला एक आरोपी की याचिका पर दिया है। जिस पर एक बच्चे के साथ ‘ओरल सेक्स’ करने का आरोप था। इस मामले में आरोपी को झांसी की निचली अदालत ने दोषी मानते हुए 10 साल की सजा सुनाई थी। सोनू कुशवाहा ने झांसी की निचली अदालत के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। इसी याचिका पर सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस अनिल कुमार की बेंच ने ये फैसला दिया है।
सुनवाई में हाईकोर्ट ने ओरल सेक्स को ‘अति गंभीर अपराध’ की श्रेणी से बाहर रखा है, लेकिन इसे POCSO एक्ट की धारा 4 के तहत दंडनीय माना है। कोर्ट का कहना है कि ये कृत्य एग्रेटेड पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट या गंभीर यौन हमला नहीं है। ऐसे मामलों में POCSO एक्ट की धारा 6 और 10 के तहत सजा नहीं सुनाई जा सकती।