सर्वे : मुसलमानों से आगे निकले हिन्दू, अयोध्या में सिर्फ राम मंदिर ही बनेगा!

अयोध्या में बाबरी मस्जिदलखनऊ| अयोध्या में बाबरी मस्जिद को कारसेवकों की बेकाबू भीड़ ने छह दिसंबर 1992 के दिन गिरा दिया था| तब से इस दिन को भारतीय लोकतंत्र के इतिहास का एक काला दिन कहा जाता है|

इस घटना को बहुत समय बीत चुका है| मस्जिद गिराए जाने के बाद यूपी में अब नई पीढ़ी जवान हो चुकी है| लेकिन आज भी उत्तर प्रदेश का कोई भी चुनाव इसके जिक्र के बिना पूरा नहीं होता| यानी कि राजनीति के लिहाज से पश्चिम भारत में ये मुद्दा आज भी उतना ही असरदार है, जितना तब था|

साल 2014 के लोक सभा चुनाव की मतदाता सूची पर गौर करें तो यूपी के लगभग 30 प्रतिशत वोटर इस घटना के बाद पैदा हुए हैं| चूँकि, उत्तर प्रदेश में इन दिनों विधानसभा चुनाव का शंखनाद होने ही वाला है, इसलिए फिर एक बार ये सवाल उठ रहे हैं कि इस बार ये मुद्दा कितना प्रभावी होगा? क्या इस घटना के बाद पैदा हुए वोटर इस मुद्दे को उतनी ही तरजीह देंगे, जितना कि पुराने वोटर देते हैं? क्या इस बार भी वोटरों पर इस मुद्दे का वही पुराना जादू चलेगा?

इस मुद्दे पर सेंटर ऑफ डेवलपिंग सोसाइटी (सीएसडीएस) के लिए लोकनीति-सेंटर ने एक सर्वे किया है| पिछले दो दशकों से ज्यादा समय तक इस संस्था ने मंदिर-मस्जिद मुद्दे पर अपनी नजर बनाए रखी है|

इस संस्था ने 1996 में अपने सर्वे में लोगों से पहली बार ये सवाल किया था कि वो गिराई गई मस्जिद की जगह किस चीज का निर्माण चाहते हैं, मंदिर या मस्जिद?

साल 1996 के सर्वे में शामिल 58 प्रतिशत हिंदुओं ने इस जगह पर सिर्फ मंदिर का निर्माण कराने की बात कही थी| जबकि, सर्वे में शामिल करीब 56 प्रतिशत मुसलमानों ने केवल मस्जिद बनाने की बात कही थी|

इसके बाद साल 2002 में हुए एक अन्य सर्वे में भी कुछ इसी तरह के आंकड़े देखने को मिले थे| लेकिन इसके बाद मंदिर-मस्जिद मांग को लेकर यूपी के वोटरों की संख्या कम होने लगी जो साल 2009 तक आते आते काफी कम हो गयी| वोटरों की राय बदलने के साथ ही इससे इतर भी कुछ मुद्दे सामने आए|

साल 2012 के यूपी विधान सभा चुनाव पोस्ट-पोल सर्वे में इस मुद्दे पर सबसे खराब स्थिति रही| इस साल हुए सर्वे में एक-तिहाई से भी कम हिंदुओं और मुसलमानों ने विवादित स्थल पर केवल मंदिर या केवल मस्जिद बनाए जाने की मांग की|

लेकिन साल 2014 से परिस्थितियाँ अचानक बदलने लगीं| इस साल केंद्र में सत्तापरिवर्तन के बाद बीजेपी की सरकार आई| इसके बाद साल 2016 में किए गए ताजा सर्वे में केवल मंदिर की मांग करने वाले हिंदुओं की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हुई है, जबकि केवल मस्जिद की मांग करने वाले मुसलमानों की संख्या जस की तस रही है|

यूपी में हुए इस सर्वे में करीब 49 प्रतिशत हिंदुओं ने विवादित स्थल पर सिर्फ मंदिर बनाने की बात की है| जबकि विवादित स्थल पर केवल मस्जिद बनाने की बात करने वाले मुसलामानों की संख्या सिर्फ 28 प्रतिशत रही है|

इसकी मुख्या वजह पिछले कुछ सालों में यूपी के अन्दर हुआ तीखा सांप्रदायिक ध्रुवीकरण है| यूपी में जनवरी 2010 से अप्रैल 2016 के बीच 12000 से अधिक सांप्रदायिक हिंसा के मामले हुए हैं| इन घटनाओं के लिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश बिंदु रहा है|

साल 2013 में मुजफ्फरनगर दंगों के बाद पचिमी यूपी लगातार सांप्रादायिक राजनीति का गढ़ रहा है| इस दंगे की वजह से कई बार साम्प्रदायिक उन्माद भड़क चुका है| लव जिहाद का मुद्दा भी हिन्दू और मुसलमान के बीच खाई पैदा करने के लिए बड़ा कारण रहा है| इसके बाद दादरी में गोहत्या पर रोक को लेकर अभियान और कैराना से सैकड़ों हिन्दुओं का मुसलमानों के डर से पलायन करना भी बड़ा कारण रहा है| ऐसी घटनाओं का मकसद हिंदुओं में सांप्रदायिक डर बढ़ाना होता है| लगता है कि इसी वजह से मंदिर-मस्जिद मुद्दे पर उनकी राय का ध्रुवीकरण हुआ है|

अब असल मुद्दा ये है कि क्या यूपी में मुसलमान मंदिर-मस्जिद के मुद्दे पर धर्मनिरपेक्ष तरीक से सोचने लगे हैं?

जी नहीं, तमाम तरह की मीडिया रिपोर्ट्स पर गौर करें तो यह बात निकल कर सामने आती है कि मुसलमानों की राय में अचानक आया ये परिवर्तन लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए और भी ज्यादा खतरनाक है| यूपी के मुसलमानों का एक बड़ा तबका इस बात की उम्मीद छोड़ चुका है कि अयोध्या में कभी मस्जिद भी बनेगी| इसका दूसरा कारण केंद्र में सत्तासीन बीजेपी की सरकार का होना भी हो सकता है जो विशुद्ध रूप से हिंदुत्व वादी विचारधारा पर चलती है|

मंदिर-मस्जिद मुद्दे पर एकएक बदले रुझान का एक पहलू ये भी है कि शिक्षित हिंदू नौजवानों में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण बड़ी ही तेजी के साथ हुआ है| क्योंकि, साल 2014 के लोक सभा चुनाव में बीजेपी ने भले ही विकास और सुशासन को चुनावी मुद्दा बनाया हो लेकिन अंदरखाने हिंदुत्ववादी भावनाओं के आधार पर ही वोटों की गोलबंदी हुई थी| 2016 के आंकड़ों से पता चलता है कि बीजेपी के वोटरों में ज्यादातर केवल मंदिर निर्माण की चाहत रखते हैं|

कुछ भी हो लेकिन बीजेपी और केंद्र की राजनीति के लिए सबसे अहम माना जाने वाला मंदिर-मस्जिद मुद्दा क्या कमाल दिखाएगा ये तो समय आने पर ही पता चलेगा| लेकिन सरकार को सभी वर्गों और तबकों के हितों की सुरक्षा पर जरूर ध्यान देने की जरूरत है| क्योंकि देश के अन्दर रहने वाला प्रत्येक नागरिक एक समान है|

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