अमेरिका में फंसा एक और ‘कुलभूषण’, केस जीतने पर मिलेंगे अरबों रूपए

अमेरिकाकपिल सिंह

बुलंदशहर। अमेरिका के टेक्सास में ए एंड एम् विश्वविद्यालय में तैनात भारतीय परमाणू वैज्ञानिक को नजरबंद हुए पाँच महीने से अधिक समय बीत जाने पर भी कार्रवाही न होने पर, हताश हो रहे वृद्ध माँ-बाप ने अपने लाल को केंद्र से देश में बापस लाने की गुहार लगाई है. माँ बाप ने कहाँ की जादव की तरह उनका बेटा भी भारत का लाल है, उनके बेटे ने भी परमाणू रिसर्च के लिए शादी तक नहीं की.  इस वृद्ध माँ बाप ने अपने बेटे को 6 वर्ष से नहीं देखा है. माता पिता का आरोप है की उनके बेटे को olanzapine नाम की मेडीशन लेने को मजबूर किया जा रहा है जिससे उसको पागल करार दिया जा सके, माता पिता की आँखे अब पथरा गई हैं.

बुलंदशहर की छोटी सी तहसील शिकारपुर के रहने वाले रिटायर शिक्षक रामकिशन शर्मा और उनकी पत्नी गिरजेश पिछले पाँच महीने से हर उस चौखट पर एडियां  रगड़ रहे हैं जहाँ से उनके लाडले की वतन वापसी हो सके, दरअसल रामकिशन के बेटे डॉ. तरुण कुमार ने भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र से पीएचडी की डिग्री हासिल की थी, जिसके बाद 2010 में ए एंड एम् यूनिवर्सिटी टैक्सास अमेरिका में बतौर परमाणु वैज्ञानिक तैनात हुए, डॉ तरुण अमेरिकी सुरक्षा की जिम्मेदारी के साथ कई महत्वपूंर्ण परमाणु रिसर्च कर रहे थे. माता पिता के मुताबिक तरुण की योग्यता को देखते हुए अमेरिकी रक्षा विभाग ने उन्हें अपने प्रोजेक्ट पर काम करने का न्योता दिया था. इस न्योते से चिढ़कर उसके साथियों ने अक्टूबर 2015 में नस्लवादी व्यव्हार भी किया भ्रस्टाचार का विरोध करने पर तरुण पर काम में ध्यान न देने और दुर्व्यवहार करने जैसे आरोप लगा कर उसको जेल भिजवा दिया और तरुण को बर्खास्त भी कर दिया गया.

विश्वविद्यालय के फैसले के विरुद्ध तरुण ने अदालत का दरवाजा खटखटाया तो संघीय न्यायालय ने डॉ. तरुण के पक्ष में फैसला सुनाते हुए विश्वविद्यालय को 350 मिलियन ( यानि दो अरब चौतीस करोड़ तेईस लाख पिचहत्तर हजार रुपये ) देने का आदेश दिया मगर विश्वविधालय ने न्यायालय के द्वारा निर्धारित धनराशि देने के बजाय 29 दिसंबर 2016 को तरुण को नजर बंद कर दिया, और अब उस पर सात लाख डालर का बॉन्ड भरने का विश्वविद्यालय की तरफ से कहाँ गया है. जो की नामुमकिन है.

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दुखयारी माँ का आरोप है की विवि प्रशाशन और सोलिसिटर जनरल उनके बेटे को दावा देकर पागल करार देने पर तुले है,क्या उनका बेटा भारत का बेटा नहीं, कुलभूषण जादव की तरह भारत की तरफ से उनके बेटे को वकील क्यों नहीं  किया जा रहा जबकि परिवार विदेश मंत्रालय से लेकर पीएमओ तक गुहार लगा चूका है.

पिता उम्र के 75 वे पड़ाव पर है. पाँच महीने की भाग दौड़ से थक चुके हैं, वो कहते कि जैसे सम्मान से कुलभूषण को भारत लाने की कवायद सरकार की तरफ से हुई है ऐसे ही उनके लाल को भी भारत वापस लाने की कवायद की जाए.

वृद्ध माँ बाप का इस वक्त कोई सहारा है तो उनका दूसरा बेटा प्रसून कुमार, पॉँच  महीने से अपने बुड्ढ़े माँ बाप के साथ जगह जगह न्याय के लिए भटक रहा है. प्रसून अपने माता पिता को लेकर मदद लिए विदेश मंत्रालय से लेकर हर उस जगह भटक रहा है जहाँ से उसके भाई की वापसी हो सके. प्रसून कहते हैं कि  वैज्ञानिक एक होता है और पुरे संसार के काम आता उसकी रिसर्च पूरी दुनिया के काम आती है.

प्रसून ए एंड एम् विश्वविद्यालय पर आरोप लगाते हुए कहते हैं कि डॉ तरुण को साजिश के तहत फसाया जा रहा है. उन पर सात लाख डालर के बॉन्ड भरने के लिए कहा गया है, जो की असंभव है.

रामकिशन शर्मा और उनकी पत्नी गिरजेश बुलंदशहर के शिकारपुर कस्बे में एक छोटे से मकान में रहते हैं. घर का गुजारा उनकी पेनशन से होता है. बेटे को मेहनत से पढ़ाया ताकि बो बड़ा आदमी बन सके और भारत का नाम रोशन कर सके मगर बेटे की कामयाबी में रोड़ा भी वही बनी. अब इस परिवार को आस है उस दिन का जब भारत सरकार से कोई उनके लिए राहत भरी खबर आये.

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