
भारतीय सेना की ओर से ठंडे रेगिस्तान में गश्त लगाने और सामान ढोने के लिए एक कदम उठाया है। सर्दियों में काम करने वाले एक जानवर को सेना में शामिल करने का फैसला लिया गया है। लेह स्थित DRDO के संस्थान Defence Institute For High Altitude Research (DIHAR) में दो ऊंटों को तैयार किया जा रहा है। संस्थान की ओर से दो कूबड़ वाले ऊंट यानि की बैक्ट्रियन कैमल्स को सेना में शामिल करने का फैसला लिया गया है। यह बैक्ट्रियन कैमल्स लद्दाख जैसे माहौल में भी बेहद शानदार ढ़ंग से काम कर रहा है।

आपको बता दें कि बैक्ट्रियन कैमल्स पहले से ही चीन, तिब्बत, मंगोलिया से लेकर मध्य एशिया तक ठंडे रेगिस्तान और बर्फ के जमे दर्रे पार करते रहे हैं। ज्ञात हो कि इटली के यात्री मार्को पोलो ने ही बैक्ट्रियन कैमल से परिचित करवाया था। वह कई बार 1271 से लेकर 1295 तक सिल्क रूट पर यात्रा करते थे। यह ऊंट 17000 फीट की ऊंचाई पर 170 किलोग्राम का वजन लेकर 12 किलोमीटर तक यात्रा कर सकते हैं। वहीं यह कैमल बिना पानी के एक हफ्ते तक बिना खाने के एक माह तक रह सकते हैं।
बैक्ट्रियन कैमल के खुर चौड़े और मजबूत होते हैं। इसी के चलते वह बर्फ और रेत पर आराम से चल सकते हैं।
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