प्रेरक-प्रसंग : अकबर और बीरबल

प्रेरक-प्रसंगएक बार शहंशाह अकबर एंव बीरबल शिकार पर गए और वहां पर शिकार करते समय अकबर की अंगुली कट गयी| अकबर को बहुत दर्द हो रहा था| पास में खड़े बीरबल ने कहा – “कोई बात नहीं शहंशाह, जो भी होता है अच्छे के लिए ही होता है|”

अकबर को बीरबल की इस बात पर क्रोध आ गया और उसने अपने सैनिकों को आदेश दिया कि बीरबल को महल ले जा कर कारागाह में डाल दिया जाये| सैनिकों ने बीरबल को बंदी बना कर कारागाह में डाल दिया एंव अकबर अकेले ही शिकार पर आगे निकल गए|

रास्ते में आदिवासियों ने जाल बिछा कर शहंशाह अकबर को बंदी बना लिया और अकबर की बलि देने के लिए अपने मुखिया के पास ले गए|

 जैसे ही मुखिया अकबर की बलि चढाने के लिए आगे बढे तो किसी ने देखा कि अकबर की तो अंगुली कटी हुई है अर्थात् वह खंडित है इसलिए उसकी बलि नहीं दी जा सकती और उन्होंने अकबर को मुक्त कर दिया| अकबर को अपनी गलती का अहसास हुआ एंव वह तुरंत बीरबल के पास पहुँचा| अकबर ने बीरबल को कारागाह से मुक्त किया एंव उसने बीरबल से माफ़ी मांगी कि उससे बहुत बड़ी भूल हो गयी जो उसने बीरबल जैसे ज्ञानी एंव दूरदृष्टि मित्र को बंदी बनाया| बीरबल ने फिर कहा – जो भी होता है अच्छे के लिए होता है| तो अकबर ने पूछा कि मेरे द्वारा तुमको बंदी बनाने में क्या अच्छा हुआ है?

बीरबल ने कहा, शहंशाह अगर आप मुझे बंदी  न बनाते तो में आपके साथ शिकार पर चलता और आदिवासी मेरी बलि दे देते| इस तरह बीरबल की यह बात सच हुई की जो भी होता है उसका अंतिम परिणाम अच्छा ही होता है|

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