पाकिस्तान को लगा हैं बड़ा झटका , चीन ने भी मदद से किय इंकार…

भारत का पड़ोसी देश पाकिस्तान की कुछ दिनों से हालत बेहाल चल रही हैं. वहीं भारत सरकार द्वारा ऐतिहासिक निर्णय पाकिस्तान को भारी पड़ रहा हैं. वहीं पाकिस्तान ने अपने दोस्स्त चीन से भी काफी गुहार लगाई थी लेकिन चीन भी इस निर्णय से शांत नज़र आ रहा हैं.

 

 

बतादें की दुनिया के कई मंचों पर पाकिस्तान का साथ देने वाला चीन इस बार उसके साथ नहीं खड़ा है. पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी कश्मीर पर गुहार लगाते हुए चीन पहुंचे थे, लेकिन चीन ने इस पर कोई टिप्पणी नहीं की. और कहा कि भारत ने जो फैसला लिया है उससे बस क्षेत्र में शांति बनी रहे.

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साथ ही चीन को भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने जवाब दिया कि भारत का फैसला उसका आंतरिक मसला है. वहीं चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी अब भारत-चीन की दोस्ती को नई ऊंचाई देने अक्टूबर में हिंदुस्तान आ रहे हैं.

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जब कश्मीर पर मध्यस्थता की बात कही थी, तो पाकिस्तान काफी खुश हुआ था. लेकिन भारत के विरोध के बाद अमेरिका को माफी मांगनी पड़ी. यहां तक कि अब अमेरिका ने कहा है कि जम्मू-कश्मीर का मसला द्विपक्षीय मसला है और अमेरिका इसमें मध्यस्थता नहीं करने जा रहा है. वहीं, जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने को अमेरिका ने भारत का आंतरिक मामला बताया है.

पाकिस्तान लगातार भारत को धमकियां देते हुए कह रहा था कि हिंदुस्तान ने संयुक्त राष्ट्र के नियमों का उल्लंघन किया है और मसले को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा समिति तक ले जाने की बात कर रहा था. लेकिन अब वहां से भी उसे बेरंग लौटना पड़ा, क्योंकि UNSC ने इस फैसले को हिंदुस्तान का आंतरिक मसला बताया.

मुस्लिम देशों के संगठन OIC के भारत के साथ संबंध पिछले कुछ समय में बेहतर हुए हैं. भारत को इस बार भी जम्मू-कश्मीर के मसलों पर इन देशों ने आंतरिक मामला बताया था. पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने भी कहा था कि दुनिया को ये स्थिति समझाना आसान नहीं है, क्योंकि कई देशों के भारत में निवेश हैं. इसलिए कश्मीर और पाकिस्तान के लोग इस मिशन को आसान ना समझें.

दरअसल दोस्त तो दोस्त पाकिस्तान को इस मसले पर आतंकी संगठन से भी लताड़ लगी है. अफगानिस्तान बॉर्डर के पास मौजूद तालिबान ने पाकिस्तान को कहा है कि वह कश्मीर मसले की तुलना अफगानिस्तान से ना करें. क्योंकि अफगानिस्तान में अब हालात सुधरने शुरू हो गए हैं, युद्ध और संघर्ष से कुछ नहीं होने वाला है. ऐसे में इस विवाद का समाधान तार्किक तरीके से निकलना चाहिए.

 

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