कमलनाथ के सामने बड़ी चुनौती, कैसे बचेगी सत्ता ?…

मध्य प्रदेश की सत्ता पर कमलनाथ को विराजमान हुए महज 6 महीने का समय गुजरा है कि उनके सामने लोकसभा चुनाव के नतीजे किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं हैं.

सूबे में अगर कांग्रेस के खिलाफ चुनावी नतीजे आते हैं तो कमलनाथ के सामने पार्टी में अपनी पोजिशन के साथ-साथ अपनी सरकार को बचाए रखने की भी चुनौती होगी.

आजतक-एक्सिस माई इंडिया एग्जिट पोल के आंकड़ो के मुताबिक मध्य प्रदेश की 29 लोकसभा सीटों में से बीजेपी को 26 से 28 और कांग्रेस को 1 से 3 सीटें मिलने का अनुमान है.

यही आंकड़े अगर नतीजों में तब्दील होते हैं तो कमलनाथ को दोहरी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है. पहला तो उन्हें अपनी सराकर को बचाने और दूसरा पार्टी के अंदर अपने रुतबे को बरकरार रखने की चुनौती होगी.

दरअसल कांग्रेस मध्य प्रदेश में 15 साल के बाद सत्ता में लौटी तो पार्टी ने लोकसभा चुनाव में बड़ी उम्मीदें पाल रखी है. 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को महज 2 सीटें मिली थी.

लेकिन पिछले साल 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बीजेपी को धूल चटाने के बाद सत्ता का वनवास खत्म किया था. ऐसे में कमलनाथ कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया को पीछे छोड़ते हुए मुख्यमंत्री बने.

हालांकि कांग्रेस बहुमत के जादुई आंकडे़ से दूर थी. सूबे के 231 सीटों में से कांग्रेस को 114 और भाजपा को 109 सीटें मिली थीं. भाजपा बहुमत के आंकड़े से 7 सीट पीछे रह गई थी, जबकि कांग्रेस भी 2.

सबसे बड़े दल के रूप में उभरी कांग्रेस ने सपा-बसपा और 4 निर्दलीय विधायकों को मिलाकर 122 विधायकों के समर्थन से सरकार बनाई. लेकिन लोकसभा चुनाव के एग्जिट पोल के आते ही बीजेपी नेताओं के रुख को देखते हुए कमलनाथ सरकार पर संकट के बादल छाए हुए नजर आ रहे हैं.

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ऐसे में कहना गलत नहीं होगा कि इंदिरा के चहेते रहे कमलनाथ का सियासी सफर राहुल की कांग्रेस और मध्य प्रदेश में किस दिशा में, किस रफ़्तार से आगे बढ़ेगा यह काफी हद  23 मई को आ रहे लोकसभा चुनाव के परिणाम पर निर्भर करेगा.

विधानसभा चुनाव में शानदार प्रदर्शन के बाद कुशल संगठनकर्ता और रणनीतिकार के तौर पर उभरे कमलनाथ पर विश्वास के पीछे चंद माह बाद लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन की आस भी वजह थी.

एग्जिट पोल के आंकड़े यदि नतीजों में तब्दील होते हैं तो लोकसभा में 9 बार छिंदवाड़ा संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने के साथ ही प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान का किला ध्वस्त करने के बाद मजबूत हुई अजेय योद्धा वाली कमलनाथ की छवि पर विपरीत असर पड़ेगा. साथ ही राज्य सरकार के कामकाज पर भी सवाल उठने लगेंगे.

 

कमजोर हो सकती है संगठन पर पकड़

कमलनाथ इस समय मध्य प्रदेश में कांग्रेस के सबसे बड़े नेता हैं. कमलनाथ संगठन पर भी मजबूत पकड़ रखते हैं. विधानसभा चुनाव के बाद प्रदेश कांग्रेस और कमलनाथ, दोनों एक-दूसरे के पर्याय रहे हैं. ऐसे में यदि लोकसभा चुनाव के नतीजे एग्जिट पोल के अनुरूप रहे तो कमलनाथ की संगठन पर पकड़ कमजोर हो सकती है.

 

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