उत्तराखंडः जले जंगलों से अब भूस्खलन का खतरा

उत्तरकाशी। एक माह से उत्तराखंड के जंगलों में आग से मानव, वन्य जीव और ग्लेशियर पर बुरा असर पड़ ही रहा है, लेकिन आने वाले दिनों के लिए भी वैज्ञानिक व आपदा प्रबंधन के जानकार खतरे के संकेत बता रहे हैं।

image_242401वैज्ञानिकों के अनुसार बारिश होने पर जले जंगलों में तेजी भूकटाव होता है। साथ ही कार्बनयुक्त पानी लोगों के पेयजल स्रोतों तक पहुंचेगा। इसका असर पानी की गुणवत्ता पर भी पड़ेगा।
गोविंद बल्लभ पंत हिमालय पर्यावरण एवं विकास संस्थान (अल्मोड़ा) के वरिष्ठ वैज्ञानिक कीर्ति कुमार का कहना है कि जब जंगलों में आग लगती है तो घास, पत्ती, झाड़ियों के साथ कीट पतंगे, पक्षी अन्य वन्य जीव भी जल जाते हैं।
आग लगने के बाद जो बारिश होती है तो पानी पूरी कार्बन युक्त राख को बहा ले जाता है। पानी पेयजल स्रोतों तक पहुंच कर लोगों के घरों तक जाता है। इससे विभिन्न तरह की बीमारी फैलने का अंदेशा बन जाता है।
इसके साथ ही नदी, नालों में पानी का रंग भी बदल जाता है। वैज्ञानिक कीर्ति कुमार ने बताया कि पिछले वर्षों तक इस तरह का अध्ययन उन्होंने अल्मोड़ा की कोसी नदी पर किया है। इस वर्ष वह पौड़ी जनपद की नयार नदी की सहायक नदी ईड़ा गाड़ पर करने जा रहे हैं।
वहीं, उत्तरकाशी के जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी देवेंद्र पटवाल इस बात से चिंतित है कि बारिश होने पर जले हुए जंगल पानी का संरक्षण नहीं कर पाएंगे। बारिश का पानी राख और जली हुई मिट्टी को तेजी से बहकर ले जाएगा।
इससे काटव से बाढ़ की आशंका भी बढ़ सकती है। जंगलों में पेड़ों की पत्तियां, खर-पतवार, झाड़ियां बारिश के पानी के बहाव के वेग को कम करती है। इससे जमीन के अंदर पानी जाता है और इससे जल संरक्षण भी होता है।

संदीप चौहान

LIVE TV