आखिर क्यों होते हैं उपचुनाव?…क्या ये इम्पोर्टेन्ट हैं…

देश में हर पांच साल में लोकसभा इलेक्शन होते हैं. लोकसभा इलेक्शन वो जिसमें 2014 में मोदी जी जीत कर आए थे. 2019 में फिर होंगे. उसकी तैयारी चालू है. विधानसभा इलेक्शन स्टेट्स के अलग-अलग होते हैं. वो दूसरे इलेक्शन हैं. वो भी पांच साल में होते हैं. लेकिन बाईपोल इससे हटकर होते हैं. आइये बताते हैं क्या होते हैं ये.

लोकसभा की सीट्स होती हैं. जिनसे लोग चुनकर मेम्बर ऑफ़ पार्लियामेंट बनते हैं. ये भी पांच साल के लिए चुने जाते हैं. लेकिन अगर बीच में कुछ ऐसा हुआ जिसकी वजह से किसी सीट से चुना हुआ प्रत्याशी (कैंडिडेट) वो सीट छोड़ देता है या कोई सीट खाली होती है, तो वहां पर जो इलेक्शन होते हैं उनको बाईपोल्स कहा जाता है. ऐसा कई हालात में हो सकता है. लेकिन मेन वाले ये हैं:

1.अगर किसी सीट से चुने गए प्रत्याशी की मौत हो जाए. उदाहरण के तौर पर उत्तर प्रदेश के कैराना में बीजेपी के एमपी हुकुम सिंह की मौत हो गई थी पिछले साल. तो 28 मई 2018 को वहां बाईपोल हुए.

2.अगर वहां से चुना गया कैंडिडेट किसी और ज़िम्मेदारी को संभालने में व्यस्त हो जाए तो. जैसे गोरखपुर सीट से एमपी रहे योगी आदित्यनाथ जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो उनकी गोरखपुर सीट के लिए बाईपोल हुए.

3.किसी सीट से चुने गए प्रत्याशी पर कोई क्रिमिनल चार्ज लगे या उसे जेल भेज दिया जाए तो भी बाईपोल होते हैं.

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क्यों होते हैं ये इम्पॉर्टेन्ट?-

बाईपोल तो कभी भी किसी भी सीट के लिए हो सकता है. और छुटपुट चुनाव तो वैसे भी होते रहते हैं. इसमें क्या बड़ी बात है अगर कैराना में या फूलपुर में चुनाव हो रहे हैं तो? एक सीट ही तो है. ऐसा नहीं है.

ऐसे छोटे-छोटे इलेक्शन कई बार नजदीकी चुनावों में बहुत बड़ा फर्क ला सकते हैं. जैसे अभी तो भारतीय जनता पार्टी केंद्र में पूर्ण बहुमत के साथ है. लेकिन ऐसा भी हो सकता है कि एकाध सीट के फर्क से कोई सरकार बना ले. वहां पर इस तरह के इलेक्शन सरकार बदल सकते हैं.

यही नहीं, कई बार ऐसे इलेक्शन आने वाले बड़े चुनावों का रुझान भी दिखा देते हैं कि किस पार्टी के लिए कैसा माहौल बन रहा है. जैसे गोरखपुर में योगी आदित्यनाथ के सीएम बनने के बाद उनकी सीट पर हुए बाईपोल में समाजवादी पार्टी के कैंडिडेट जीत गए. इसे योगी के लिए एक हार माना गया. जिसको बीजेपी से भी जोड़ा गया.

2018 में अलवर, अजमेर, फूलपुर, अररिया, कैराना जैसी जगहों पर बाईपोल हुए. ये बाईपोल जनता का मूड भांपने में भी मदद करते हैं. खास तौर से जब देश के सबसे बड़े चुनाव होने वाले हो, तो हर चुनाव पर सबकी नज़र बने रहना लाज़मी है.

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