क्या है छोटे स्टार्टअप शुरू करने के लिए महत्वपूर्ण कदम, जानें कैसे बढ़ाएं पहला कदम

लघु उद्योग एवं इस श्रेणी के अन्तर्गत आने वाला कोई भी छोटा कारखाना लगाने के लिए केन्द्रीय या राज्य सरकार की औपचारिक अनुमति लेने की बिल्कुल जरूरत नहीं है। परंतु जो छोटे कारखाने ऐसी चीजों का उत्पादन आरंभ करना चाहते हैं जिनके लिए विदेशी पुर्जों की आवश्यकता हो उन्हें अपने उत्पादन के सम्बन्ध में विकास कमिश्नर (लघु उद्योग) की पूर्व स्वीकृति लेनी जरूरी है। इसके अतिरिक्त छोटे कारखानों को राज्य सरकार अथवा स्थानीय संस्थानों के अधिकारियों के द्वारा निर्धारित कारखाना अधिनियम (फैक्ट्री एक्ट), ‘दुकान तथा प्रतिष्ठान अधिनियम’ और नगर निगम तथा कच्चे माल का कोटा देने के संबंध में बनाये गये नियमों का पालन करना आवश्यक होता है।

क्या है छोटे स्टार्टअप शुरू करने के लिए महत्वपूर्ण कदम, जानें कैसे बढ़ाएं पहला कदम

लघु उद्योगों का पंजीकरण

यद्यपि लघु उद्योगों का राज्य उद्योग निदेशालय से पंजीकरण जरूरी नहीं है परंतु फिर भी अपने लाभ के लिए SDI से इसको पंजीकृत करवा लेना चाहिए। कुछ निर्धारित वस्तुएं ऐसी हैं जिन्हें बनाने के लिए राज्य सरकार या केन्द्र सरकार से लाईसेंस लेना पड़ता है, इसके अतिरिक्त इस श्रेणी के उद्योगों के लिए सरकार द्वारा कुछ प्रोत्साहन-लाभ का प्रावधान किया गया है।

यह सुविधा उन्हीं लघु उद्योगों को प्रदान की जाती है, जो राज्य उद्योग निदेशालय के द्वारा पंजीकृत होते हैं, चाहे उद्योग पंजीकृत हो या न हो लेकिन राज्य सरकार द्वारा बनाए गए नियमों का पालन करना आवश्यक है, इसलिए SDI में उद्योगों का पंजीकरण करवा लेना चाहिए।

लघु उद्योग का पंजीकरण दो प्रकार से होता है :

(1) सामयिक पंजीकरण

(2) स्थायी पंजीकरण

लघु उद्योगों का सामयिक पंजीकरण इकाई के उत्पादन में आने से पहले कराया जाता है। यह पंजीकरण सर्टिफिकेट प्रारंभ में दो साल के लिए प्रदान किया जाता है। यदि इकाई इस अवधि में उत्पादन में नहीं आ पाती है तो पंजीकरण का नवीकरण सम्बन्धित राज्य उद्योग निदेशालय से करवाया जाता है। यह नवीकरण मात्र छः महीने के लिए किया जाता है। जब इकाई उत्पादन में आ जाती है, तो प्रार्थना-पत्र SDI को देकर स्थायी पंजीकरण करवाया जाता है।

उपयुक्त उद्यम का चुनाव कैसे करें

जिन उद्योग-धन्धों की सहायता से आय बढ़ाने या स्वतंत्र रूप से जीविका कमाने में सहायता मिल सकती है, उनमें से चुने हुए उद्योग-धन्धों की जानकारी इस पुस्तक में दी गयी है। वैसे तो इसमें बताये गये सभी उद्योग-धन्धे मुनाफा दे सकने वाले हैं और देश-विदेशों में लाखों व्यक्ति इन चुने हुए उद्योग-धन्धों से अच्छा लाभ कमा रहे हैं, परन्तु इस संबंध में यह बात भी स्मरण रखने योग्य है कि आजकल प्रायः सभी उद्योग-धन्धों में इतनी प्रतिस्पर्धा चल रही है कि पुराने तथा अनुभवी व्यक्तियों के मुकाबले में जो नये व्यक्ति इस क्षेत्र में उतरते हैं उन्हें अपने व्यवसाय को सुचारु रूप से चलाने के लिए कुछ संघर्ष का भी सामना करना पड़ सकता है और इसके लिए अच्छी व्यापारिक सूझ-बूझ की भी आवश्यकता पड़ती है ।

अपने लिए अधिक उपयुक्त सिद्ध हो सकने वाले उद्योग-धन्धे का चुनाव करने के लिए नीचे बताये गये तथ्यों पर भली-भांति विचार कर लेना आपके लिए मार्ग दर्शक सिद्ध हो सकता है :

क) जिन वस्तुओं का आप उत्पादन करना चाहते हैं उनकी बिक्री के लिए आपके आस-पास के क्षेत्र में पर्याप्त सम्भावना है या नहीं ? यदि अपने उत्पादन को आप दूरस्थ स्थानों एवं बाजार में भी बेचना चाहते हैं तो उसके लिए आप समुचितसाधन जुटा सकते हैं या नहीं ?

ख) जो उद्योग आप शुरू करना चाहते हैं उसमें अधिक प्रतिस्पर्धा है तो अपने अन्य प्रतिद्वन्दियों के साथ-साथ आप अपना माल सफलतापूर्वक कैसे बेच सकते हैं?

ग) उस उद्योग के लिए आपके पास आवश्यक ‘पावर कनेक्शन’ तथा स्थान की व्यवस्था है या नहीं?

घ) अपने उत्पादन को लाभ सहित तथा जल्दी बेचने के लिए क्या आप उसका मूल्य दूसरे प्रतिद्वन्दियों की तुलना में कुछ कम रख सकते हैं या उनसे बढि़या माल उचित कीमत पर तैयार कर सकते हैं?

च) आपके कारखाने के लिए आवश्यक कच्चा माल आपको पर्याप्त मात्रा में तथा उचित मूल्य पर उपलब्ध हो सकता है या नहीं?

ऊपर बताये गये तथ्यों के आधार पर तथा अपनी व्यापरिक सूझ-बूझ को उपयोग में लाकर अपने लिए अधिक उपयुक्त सिद्ध हो सकने वाले धन्धे का चुनाव आप सरलतापूर्वक कर सकते हैं।

सरकारी सुविधाएं :

सरकार की औद्योगिक उदार नीति के तहत लघु एवं कुटीर इकाईयों के विकास का विशेष ध्यान रखा गया है। इन इकाईयों को विभिन्न नियंत्रणों एवं कर्मचारी शासन से मुक्त कर दिया गया है। लघु उद्योगों को विकासोन्मुख बनाने के विचार से सरकार द्वारा 846 वस्तुओं का उत्पादन लघु इकाईयों में करने के लिए खास सुरक्षित रखा गया है। इसमें परम्परागत पेशा एवं ग्रामीण शिल्पकारों के कार्य-उपकरण एवं औजारों तथा कला को अनुसंधान के आधार पर विकसित एवं नवीकृत करने का प्रावधान भी है ।

अन्य उपयोगी सुविधाओं का वर्णन निम्नलिखित है :

फैक्ट्री के लिए उपयुक्त स्थान की सुविधा :

विभिन्न राज्यों में ‘उद्योग निदेशक’ के द्वारा प्रमुख नगरों, कस्बों तथा ग्रामीण क्षेत्रों में ‘औद्योगिक बस्तियां’ भी स्थापित की गयी हैं जहां लघु उद्योग स्थापित करने के लिए इच्छुक उद्यमियों को कारखाने स्थापित करने के लिए बनी बनायी इमारतें किराये पर उपलब्ध हो सकती हैं।

इसी तरह औद्योगिक क्षेत्रों में प्रत्येक कारखाने के लिए आवश्यकतानुसार अलग-अलग प्लॉट भी आबंटित किये जाते हैं। इन औद्योगिक बस्तियों या प्लॉटों का किराया उनके क्षेत्रफल और उनकी स्थिति के अनुसार अलग-अलग है। सामान्यतः यह किराया बहुत कम होता है। पहले पांच वर्षों का किराया रियायती दर पर देना होता है। कहीं-कहीं राज्य सरकारें औद्योगिक बस्ती के अन्दर कारखाने की इमारत बनाने के लिए पानी, बिजली आदि की सुविधाओं से सम्पन्न प्लॉट भी देती है। औद्योगिक बस्तियों में कारखानों के लिए स्थान प्राप्त करने के लिए आवश्यक प्रार्थना-पत्र, उस राज्य के ‘उद्योग-निदेशक’ को देना चाहिए।

पावर कनेक्शन के लिए किससे सम्पर्क करें?

कारखाना चलाने के लिए लघु उद्योगों को रियायती दर पर बिजली भी दी जाती है। इसके लिए आवश्यक जानकारी, स्थानीय ‘इलॉक्ट्रिक सप्लाई अण्डरटेकिंग’ से मिल सकती है और इसके लिए आवश्यक प्रार्थना पत्र ‘डायरेक्टर आफ इण्डस्ट्रीज’ से स्वीड्डत कराकर भेजना चाहिए।

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लघु उद्योगों के लिए ऋण की सुविधाएं :

चूंकि लघु उद्योग स्थापित करने एवं सुचारु रूप् से चलाने के लिए साख-ऋण की अहम भूमिका है। लघु उद्योगों को आसान शर्तों एवं कम ब्याज-दर पर ऋण उपलब्ध न हो पाने के फलस्वरूप कभी-कभी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इसके अतिरिक्त बहुत बार वित्तीय संस्थाओं के द्वारा विलम्ब से ऋण प्रदान किया जाता है या अपर्याप्त ऋण प्रदान कराया जाता है। इन समस्याओं को मद्देनजर रखते हुए सरकार द्वारा ‘भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक’ की स्थापना की गयी है ।

यह मुख्य रूप् से वित्तीय संस्थाओं को ऑटोमेटिक रिफाइनान्स स्कीम या नार्मल रिफाइनान्स स्कीम के तहत फण्ड प्रदान करता है। भारतीय लघ उद्योग विकास बैंक के द्वारा खास नई सुविधाएं, जैसे – सिंगल विण्डो कन्सेप्ट के तहत कम्पोजिट लोन राज्य वित्तीय निगमों की अंतः संरचना को सुदृढ़ बनाने के लिए रियायती ऋण तथा नियोगी सेवा का प्रावधान किया गया है। इसके अतिरिक्त और कई योजनाओं के अन्तर्गत लघु उद्योगों को या तो सीधे भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक के द्वारा या राज्य वित्तीय निगमों और व्यवसायिक बैंकों के द्वारा ऋण प्रदान किया जाता है, जिसका विवरण आगे दिया गया है।

साधारणतः ऋण दो प्रकार के होते हैं :

 (a) सावधिक ऋण और (b) कार्यशील पूंजी ऋण

सावधिक ऋण की आवश्यकता कारखाना स्थापित करने के लिए होती है। यह ऋण कारखाने की अचल सम्पत्ति जैसे जमीन, मकान, मशीन, इत्यादि के ऊपर लागत के आधार पर दिया जाता है। यह ऋण वित्तीय संस्थाओं के द्वारा कारखाने की अचल सम्पत्ति को गिरवी रखकर प्रदान किया जाता है।

कार्यशील पूंजी ऋण की आवश्यकता उद्योग को सुचारु रूप से चलाने के लिए होती है। यह ऋण व्यवसायिक बैंकों के द्वारा कारखाने की चल सम्पत्ति जैसे – कच्चा माल, तैयार वस्तु तथा सेल्स क्रेडिट के मद में गिरवी के आधार पर कैश क्रेडिट, ओवरड्राफ्ट तथा बुकडेब्ट के रूप में दिया जाता है। सावधिक ऋण मुख्य रूप से राज्य वित्तीय निगम के द्वारा प्रदान किया जाता है। वित्तीय निगम भारत के करीब-करीब सभी राज्यों में है। यह वित्तीय निगम सम्बन्धित राज्य सरकार का उपक्रम होता है।

जिन राज्यों में वित्तीय निगम का गठन नहीं किया गया है, उन राज्यों में सावधिक ऋण सम्बन्धित राज्य औद्योगिक विकास निगम के द्वारा दिया जाता है। कार्यशील पूंजी ऋण व्यवसायिक बैंक के द्वारा दिया जाता है। ऐसे व्यवसायिक बैंक सावधिक ऋण भी दे सकता है। लेकिन फिर भी साधारणतया बैंकों के द्वारा कार्यशील पूंजी ऋण ही प्रदान किये जाते हैं। सरकार की ओर से लघु उद्योगों को जिन मुख्य-मुख्य स्रोतों से ऋण मिल सकता है, उनके सम्बन्ध में आवश्यक जानकारी नीचे दी जा रही है।

() राज्य सरकारों से मिल सकने वाला ऋण :

सामान्यतः लघु उद्योगों को उनसे संबंधित राज्य के ‘डायरेक्टर आफ इण्डस्ट्रीज’ या उनके अधीन ‘डिस्ट्रिक्ट इण्डस्ट्रीज ऑफिसर’ के कार्यालय से, सहायता अधिनियम के अंतर्गत निम्न शर्तों पर ऋण मिल सकता है :

ब्याज की दर :

लघु उद्योगों को दिये जाने वाले उपर्युक्त ऋण पर ब्याज की दर काफी कम रखी गयी है जो समय के अनुसार घटती बढ़ती रहती है।

ऋण सम्बन्धी अन्य जानकारी :

1. इस ऋण की अदायगी अधिकतम 10 वर्ष में की जा सकती है।

  1. कुछ राज्यों में ‘डिस्ट्रिक्ट इण्डस्ट्रीज ऑफिसर्स’ अथवा जिलाधीशों को 25 हजार रुपये तक दे सकने का अधिकार दे दिया गया है।
  2. औद्योगिक सहकारी संस्थाओं को उनके साधनों के विकास के लिए सहायता प्रदान करने के लिए उद्देश्य से केन्द्रीय सरकार उन सहकारी संस्थाओं की पूंजी के 75 प्रतिशत भाग तक के बराबर रकम, द्विवर्षीय ऋण के रूप में दे सकती है। शेष रकम या तो राज्य सरकार से ऋण के रूप में मिल सकती है अथवा संस्था को स्वयं उसकी व्यवस्था करनी होती है।

() राजकीय वित्त निगम अधिनियम’ के अन्तर्गत मिल सकने वाला ऋण :

‘राजकीय वित्त निगम अधिनियम 1951’ के अन्तर्गत, मझौले और छोटे उद्योगों को ‘दीर्घावधि’ और ‘मध्यावधि’ ऋण देने के लिए, विभिन्नि राज्यों में ‘वित्तनिगम’ स्थापित किये गये हैं – इनसे ऋण लेने के लिए निम्न बातों को ध्यान में रखना चाहिए –

(1) राजकीय वित्तनिगम: राज्य सरकारों के एजेन्टों के रूप में छोटे उद्योगों को रुपया उधार देने के अतिरिक्त, अपनी पूंजी में से उन्हें दीर्घावधि, मध्यावधि और अल्पावधि ऋण देते हैं।

(2) ये निगम, ऋणों पर सामान्यतः 12 से लेकर 20 प्रतिशत की दर से वार्षिक ब्याज लेते हैं। वैसे ब्याज की दरें, विभिन्न राज्यों में अलग-अलग हैं।

(3) कई राज्यों में ये वित्त निगम, ठीक समय परऋण की अदायगी कर देने वालों को, ब्याज में 0.5 प्रतिशत वार्षिक छूट देते हैं।

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