हाईटेक हुआ मोक्ष का रास्ता, 80 मिनट में मिलेंगी अस्थियां

रिपोर्ट: अमित सिंह

वाराणसी। काशी, दुनिया की सबसे प्राचीन नगरी ही नहीं आस्था का सबसे बड़ा केंद्र है। मान्यता है कि काशी में मरने से मोक्ष प्राप्त होता है। अगर मृत्यु कहीं और हुई है तो यहां के हरिश्चंद्र घाट पर दाह संस्कार करने मात्र से भी आत्मा शिव में लीन हो जाती है, लेकिन समय के बदलते परिवेश को देखते हुए अब मोक्ष की व्यवस्था भी हाईटेक होने जा रही हैं।

दाह संस्कार

पूरी दुनिया में काशी भोले की नगरी के नाम से जानी जाती है। साथ ही अब यह जगह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूसरे घर की वजह से भी जानी जाती है। पीएम मोदी वाराणसी से ही संसद पहुंचे हैं और वह देश के सरदार हैं या उन्हीं की भाषा में कहें तो प्रधानसेवक हैं।

अब सरकार की पहल पर ही मोक्ष की व्यवस्था भी हाईटेक होने जा रही है। इसकी तैयारी काशी के श्मशान हरिश्चंद्र घाट पर हो चुकी है। यहां आने वाले शवों के दाह संस्कार के लिए अब नेचुरल गैस सिस्टम का यूज होगा। गेल इंडिया और दिल्ली के एक प्राइवेट कंपनी ने मिलकर इस प्रोजेक्ट को पूरा कर लिया है।

इसका निरीक्षण गुरुवार को केंद्रीय पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने किया और जाते-जाते यह वादा भी कर गए कि इस महान और पवित्र योजना की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जल्द करेंगे।

पूरा दिन घूमे शहर में

प्रधान गुरुवार को पूरा दिन वाराणसी में रहे। उन्होंने अंडर ग्राउंड गैस पाइप लाइन योजना की प्रगति जांचने के अलावा उन जगहों का भी निरीक्षण किया, जहां इस योजना का काम पूरा हो चुका है।

साथ ही प्रधान ने सबसे बड़े प्रोजेक्ट के रूप में हरिश्चंद्र घाट पर तैयार हुए नेचुरल गैस से दाह संस्कार करने की तैयारियों का भी जायजा लिया।

इस दौरान केंद्रीय मंत्री ने कहा कि प्रोजेक्ट कंप्लीट हो चुका है और 15 दिनों में इसकी शुरुआत भी हो जाएगी, जिसका उद्घाटन करने के लिए खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वाराणसी आएंगे।

80 मिनट में मिलेंगी अस्थियां

वहीं इस पूरे प्रोजेक्ट की देखरेख करने वाली कंपनी के कर्मचारी नीरज वाली ने बताया कि हरिश्चंद्र घाट पर नेचुरल गैस के जरिए दाह संस्कार का यह प्रोजेक्ट बिल्कुल नए सिरे से शुरु किया जा रहा है। इससे पहले यहां पर इलेक्ट्रॉनिक दाह संस्कार की प्रक्रिया पूरी की जाती थी। इस कारण बिजली की खपत, पॉल्यूशन और ज्यादा वक्त लगता था, लेकिन नेचुरल गैस से शवों का दाह संस्कार जल्द तो होगा ही साथ में पर्यावरण प्रदूषण भी कम होगा। पेड़ों का कटाव और गंगा में अस्थियों और जली हुई लकड़ी के न जाने के कारण वहां भी पॉल्यूशन घटेगा। सबसे अच्छी बात यह है कि धार्मिक दृष्टि से पूरी प्रक्रिया को किया जाएगा और लगभग 80 मिनट के बाद शव की अस्थियां उनके परिजनों को भी सौंप दी जाएगी ताकि वह धार्मिक प्रक्रिया कर उसका विसर्जन कर सकें।

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