उत्तर प्रदेश मेट्रो रेल कारपोरेशन के प्रबंध निदेशक के सेवा विस्तार को सरकार की मंजूरी

उत्तर प्रदेश मेट्रो रेल कारपोरेशन के प्रबंध निदेशक कुमार केशव के सेवा विस्तार को सरकार की मिली मंजूरी, राज्य सरकार ने उन्हें छह महीने का सेवा विस्तार दिया है।

यूपी में मेट्रो ट्रेन दौड़ाने के मुख्य ‘आर्किटेक्ट’ कुमार केशव का टेक्निकल सफर सन 1977 में ही शुरू हो गया था जब उनका चयन इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलाजी (आईआईटी)- रुड़की में हुआ। यहाँ से उन्होंने सिविल इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त की, जिसके तुरंत बाद आईआईटी- कानपुर से जियो टेक्न‍िकल, सॉयल मेकेनिक्स ऐंड फाउंडेशन इंजीनियरिंग से अव्वल आंको के साथ एमटेक किया जहां वो स्वर्ण पदक विजेता भी रहे। इसी वर्ष संघ लोक सेवा आयोग के जरिए इंडियन रेलवे सर्विस ऑफ इंजीनियर्स (आइआरएसइ) में इनका चयन हो गया। जून, 1984 में इन्हें भारतीय रेलवे में ज्वाइनिंग मिली। साउथ-इस्टर्न रेलवे में इन्हें पहली पोस्टिंग बिलासपुर में मिली। यहां इन्होंने आठ वर्ष तक काम किया जहाँ इनकी नई रेलवे ट्रैक को बिछाने में बड़ी भूमिका रही है। यहां से केशव खड़गपुर आ गए जहाँ पौने चार साल उन्होंने काम किया। इन्होंने तीन साल सेंट्रल रेलवे के अंतर्गत झांसी में सीनियर रेल कोआर्डिनेशन के तौर पर कामकाज भी देखा।

वर्ष 1998 में कुमार केशव देश में ‘मेट्रो मैन’ के नाम से विख्यात इंजीनियर ई. श्रीधरन के संपर्क में आ गए थे। वर्ष 2002 में केशव ने दिल्ली मेट्रो में चीफ इंजीनियर के तौर पर ज्वाइन किया। इसके बाद यह दिल्ली मेट्रो में एक्जीक्युटिव डायरेक्टर और डायरेक्टर, प्रोजेक्ट ऐंड प्लानिंग बने। वर्ष 2012 में कुमार केशव दिल्ली मेट्रो छोड़कर ब्रिस्बेन, आस्ट्रेलिया चले गए। यहां पर केशव ने हैवी-हॉल प्रोजेक्ट में प्रोजेक्ट डायरेक्टर के तौर पर काम किया।

वर्ष 2008 में जब लखनऊ मेट्रो की डीपीआर बन रही थी तो उसमे कुमार केशव की मुख्य भूमिका रही थी जो उस समय दिल्ली मेट्रो में एक्जीक्युटिव डायरेक्टर के तौर पर वहां कार्यरत थे। कुमार केशव के अनुभव को देखते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने वर्ष 2014 में इन्हें लखनऊ मेट्रो के निर्माण की जिम्मेदारी सौंप दी। इसके बाद से केशव यूपी में मेट्रो ट्रेन निर्माण की मुख्य धुरी बन गए हैं। उत्तर प्रदेश के ‘मेट्रो मैन’ के रूप में प्रसिद्ध‍ि पा चुके है जो इन सात सालो में भारत के पहले ऐसे प्रबंध निदेशक बन गए है जो एक साथ 03 सक्रिय मेट्रो प्रणाली का कार्यभार संभल रहे है। आने वाले कुछ महीनों में वो कानपुर मेट्रो का भी कार्य ख़त्म कर सरकार को सौंप देंगे। वैसे तो लखनऊ मेट्रो को भारत में सबसे पहले बने का ख़िताब हासिल है पर आने वाले समय में ये ख़िताब कानपुर मेट्रो को दे दिया जाएगा।

कुमार केशव को सात साल पहले वर्ष 2014 में लखनऊ मेट्रो (अब यूपी मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन लिमिटेड) के प्रबंध निदेशक के रूप में नियुक्त किया गया था। जिस अवधि में उन्होंने लखनऊ को भारत की सबसे तेज मेट्रो परियोजना का उपहार दिया। इस परियोजना ने न केवल शहर को अंतरराष्ट्रीय ख्याति दी बल्कि लखनऊ के लोगों की जीवन शैली को भी बदल दिया। लखनऊ मेट्रो परियोजना ने इंजीनियरिंग के क्षेत्र में कई मील के पत्थर हासिल किए हैं जिनमें से कुछ प्रमुख उपलब्धियां जैसे मवैया रेलवे क्रॉसिंग पर 225 मीटर लंबे संतुलित कैंटिलीवर स्पैन का निर्माण, जिसके नीचे भारतीय रेलवे का परिचालन हैं, अवध चौराहे पर 60 मीटर का विशेष स्टील स्पैन का निर्माण, गोमती नदी पर 177 मीटर लंबा संतुलित कैंटिलीवर पुल और निशातगंज में एक और 60 मीटर विशेष स्टील स्पैन (केवल 5 दिनों में निर्मित) है। यह सब कुमार केशव के उत्कृष्ट नेतृत्व में इंजीनियरों की समर्पित टीम द्वारा रणनीतिक योजना और सावधानीपूर्वक निष्पादन के कारन ही संभव हो पाया है।

उत्तर प्रदेश के अन्य शहरों में मेट्रो की आवश्यकता को देखते हुए, सरकार ने कानपुर और आगरा जैसे शहरों में मेट्रो बनाने का फैसला किया, जिसकी पूरी जिम्मेदारी कुमार केशव को दी गई और परिणामस्वरूप, उनकी देखरेख में सत्तर प्रतिशत ( कानपुर मेट्रो के सिविल निर्माण कार्य का 70%) मात्र दो वर्षों में पूरा किया गया। डबल ‘टी’ गाइडर और ट्विन पियर जैसी तकनीक जो कानपुर मेट्रो ने इस्तेमाल किया, वह भी अपनी तरह की पहली तकनीक है जिसका इस्तेमाल देश में किसी भी मेट्रो परियोजना द्वारा पहली बार किया गया है। कानपुर मेट्रो परियोजना भी अपने प्राथमिक कॉरिडोर को निर्धारित समय सीमा के भीतर पूरा कर एक नया मील का पत्थर स्थापित करेगी। वही आगरा मेट्रो परियोजना में 18 खंभों के निर्माण के साथ ही मात्र छह माह में 50 से अधिक खंभों की नींव रखी जा चुकी है।

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